लोग संकट को भी संगीत की स्वर लहरियों के साथ जी लेते हैं। घरेलू परेशानियाँ होती हैं तो गा लेते हैं - ''राही मनवा दुख की चिंता क्यों सताती है, दुख तो अपना साथी है।'' और उसके बाद ''दुख भरे दिन बीते रे भैया, अब सुख आयो रे'' गाने का भी अवसर आता है।
पानी का संकट होता है तो लोग गाते हैं। 'अल्ला मेघ दे, पानी दे, अल्ला मेघ दे।' और सचमुच मेघ चला आता है- 'तुमने पुकार और हम चले आए' वाले अंदाज में लोग नाच पड़ते हैं। जैसे मयूर नाचता है। बूढ़े गाते हैं - 'बरसो राम धड़ाके से'। जवानियाँ गाती हैं, 'पानी में जले मोरा गोरा बदन'। बच्चे गाते हैं, 'पानी बरसे झमा-झम-झम, मोर नाचे छम-छम-छम।'
भीषण गरमी में जब आग बरसती है और लोगों का शरीर जलने लगता है, घर के नल की हालत यूं रहती है कि दो-चार अमृत-बूँद टपक गई तो बहुत है। लोग कभी नगर निगम वालों से तो कभी ऊपर वाले की ओर देख कर बोल पड़ते हैं - 'प्यास लिए मनवा हमारा ये तरसे, एक बूंद तेरी दया के बरसे।' लेकिन बूँद के लिए लोग तरसते रह जाते हैं, वह नहीं बरसती। सौ चक्कर लगाओ, तब कहीं टैंकर-देव के दर्शन होते हैं और मोहल्ले वाले नाच उठते हैं, 'हाय, मेरा टैंकर घर आया ओ राम जी।' और फिर पहले हम, पहले हम की सिर-फुटव्वल। एक भाई दूसरे भाई से, एक बाई दूसरी बाई से बोलती है- 'हमसे ना टकराना, हमसे है जमाना' और 'तेरे जेसे तो आते-जाते रहते हैं।'
टैंकर की हालत उस चलनी की तरह होती है जिसमें जिहत्तर छेद होते हैं। आते-आते कोई शायरनुमा पड़ोसी टैंकर की हालत पर दुष्यंत कुमार को याद करते हुए कहता है - 'यहाँ तक आते-आते खाली हो जाते हैं सब टैंकर, हमें मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा।' उनका इशारा पार्षदों, नगर निगम के दूसरे अफसरों समेत दाद किस्मके लोगों और नेताओं की तरफ होता है।
टैंकर से कुछ बाल्टियां पानी टपकने पर दुखी लोग टैंकरवाले से पूछते हैं, ''क्यों जी, ये क्या तमाशा है, इतना कम पानी?''
टैंकर वाला मुसकरा कर कहता है - '' मैं तो पानी भरवा रहा था...मैं तो टैंकर को ला रहा था। मैं तो सीधे ही आ रहा था... सारा पानी गिर जाए तो मैं क्या करूँ ।''
लोगों ने भी मुंडी हिलाई। इतने सारे छेद हों तो पानी का भेद कैसे बाहर नहीं आएगा। टैंकर वाले को लोगों ने धन्यवाद दिया कि तुम यहाँ तक आए। कल भी आना। परसों भी आना। हम लोगों की प्यास बुझाना। मोहल्ले के लोग अफसरों से मिलते हैं, पार्षदों से मिलते हैं लेकिन सब कूलर-मगन हैं। सुनने को खाली नहीं। लोग हार कर चुप कर जाते हैं। कोई गुनगुनाता है - ''इस भरी दुनिया में कोई भी हमारा न हुआ। गैर तो गैर हैं अपनो का सहारा न हुआ।''
पानी के लिए भटक रहे हैं लोग। इस घर से उस घर। इस मुहल्ले से उस मुहल्ले। एक एक तरफ पानी की बर्बादी दीखती है तो दूसरी तरफ सूखा। पानी बर्बाद करने वालों को बुजुर्ग लोग सलाह देते हैं -
रहिमन पानी राखिए,बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरै, मोती, मानस चून।
नए जमाने के लोगों को दोहा समझ में नहीं आता। चोलीवाला गीत होता तो उसके पीछे का दर्शन समझ भी लेते। गंभीर दर्शन के लिए उतना दिमाग भी तो चाहिए। दिमाग दूरदर्शन के विज्ञापनों को समझने में लग जाता है। बचा-खुचा एक दूसरे की चुगली-चकारी में या फिर टांग खींचने में। पानी का दर्शन बड़ा अजीब है। 'पानी रे पानी तेरा रंग कैसा, जिसमें मिला दो लगे उस जैसा' लगता है पानी अवसरवादी चमचा है। जिस नेता के साथ चिपका, उसके जैसा हो गया। जो लोग पानी के साथ टुल्लू-पंप के सहारे अवैध संबंध बना लेते हैं, वे सुखी रहते हैं। टुल्लूपंपधारी लोगों की लोग निंदा करते हैं और टुल्लू पंप का स्वामी टुल्लू पंप से कहता है - ''आजकल तेरे मेर प्यार के चर्चे हर ज़ुबान पर, सबको मालूम है और सबको खबर हो गई।''
जल संकट के घनघोर दौर में जिनका कोई नहीं उनका तो खुदा होता है। वे जब प्रार्थना करते हैं, तब पानी बरस पड़ता है और पानी बरसते ही समस्या धीरे-धीरे समाप्त होने लगती है। अफसर लोगों की छाती जुड़ाती है। जल-पीडि़तों की आत्माएं तृप्त होती हैं। मछली को जैसे जल मिल जाता है। भूखे को जैसे खाना मिल जाता है और उन अफसरों की जेबें भी गरम हो जात है, जिन्होंने जल संकट को दूर करने की योजनाएं बनाई थी। बरसात के कारण योजनाएं पानी में मिल जाती हैं। और अफसरों की जेबें गरम हो जाती है। वे कहते हैं- 'बरखा पानी जरा जम के बरसो, कमाई का मौका जा न पाए, इस तरह बरसो।''
आम आदमी सोचता है, इस साल तो हालात नहीं सुधरे, अगले साल ज़रूर सुधर जाएंगे।
ऐसा अच्छा-अच्छा सोचते उसका पूरा जीवन बीत जाता है मगर सुख नहीं मिलता। हालात नहीं सुधरते। नेता सुधरें तो हालात सुधरें। अफसर सुधरे तो हालात सुधरें। नेता-अफसर बोलते हैं - ''हम नहीं सुधरेंगे।' पानी हो तब न। इन्हें पानी की ज़रूरत भी नहीं। इनका काम तो चुल्लू भर पानी से चल जाता है। बेशर्मी का पर्याय बने लोगों को बेशर्मी ही रास आती है। बेशर्मी देख कर ये गा उठते हैं - 'तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त, तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त।'
पानी का संकट होता है तो लोग गाते हैं। 'अल्ला मेघ दे, पानी दे, अल्ला मेघ दे।' और सचमुच मेघ चला आता है- 'तुमने पुकार और हम चले आए' वाले अंदाज में लोग नाच पड़ते हैं। जैसे मयूर नाचता है। बूढ़े गाते हैं - 'बरसो राम धड़ाके से'। जवानियाँ गाती हैं, 'पानी में जले मोरा गोरा बदन'। बच्चे गाते हैं, 'पानी बरसे झमा-झम-झम, मोर नाचे छम-छम-छम।'
भीषण गरमी में जब आग बरसती है और लोगों का शरीर जलने लगता है, घर के नल की हालत यूं रहती है कि दो-चार अमृत-बूँद टपक गई तो बहुत है। लोग कभी नगर निगम वालों से तो कभी ऊपर वाले की ओर देख कर बोल पड़ते हैं - 'प्यास लिए मनवा हमारा ये तरसे, एक बूंद तेरी दया के बरसे।' लेकिन बूँद के लिए लोग तरसते रह जाते हैं, वह नहीं बरसती। सौ चक्कर लगाओ, तब कहीं टैंकर-देव के दर्शन होते हैं और मोहल्ले वाले नाच उठते हैं, 'हाय, मेरा टैंकर घर आया ओ राम जी।' और फिर पहले हम, पहले हम की सिर-फुटव्वल। एक भाई दूसरे भाई से, एक बाई दूसरी बाई से बोलती है- 'हमसे ना टकराना, हमसे है जमाना' और 'तेरे जेसे तो आते-जाते रहते हैं।'
टैंकर की हालत उस चलनी की तरह होती है जिसमें जिहत्तर छेद होते हैं। आते-आते कोई शायरनुमा पड़ोसी टैंकर की हालत पर दुष्यंत कुमार को याद करते हुए कहता है - 'यहाँ तक आते-आते खाली हो जाते हैं सब टैंकर, हमें मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा।' उनका इशारा पार्षदों, नगर निगम के दूसरे अफसरों समेत दाद किस्मके लोगों और नेताओं की तरफ होता है।
टैंकर से कुछ बाल्टियां पानी टपकने पर दुखी लोग टैंकरवाले से पूछते हैं, ''क्यों जी, ये क्या तमाशा है, इतना कम पानी?''
टैंकर वाला मुसकरा कर कहता है - '' मैं तो पानी भरवा रहा था...मैं तो टैंकर को ला रहा था। मैं तो सीधे ही आ रहा था... सारा पानी गिर जाए तो मैं क्या करूँ ।''
लोगों ने भी मुंडी हिलाई। इतने सारे छेद हों तो पानी का भेद कैसे बाहर नहीं आएगा। टैंकर वाले को लोगों ने धन्यवाद दिया कि तुम यहाँ तक आए। कल भी आना। परसों भी आना। हम लोगों की प्यास बुझाना। मोहल्ले के लोग अफसरों से मिलते हैं, पार्षदों से मिलते हैं लेकिन सब कूलर-मगन हैं। सुनने को खाली नहीं। लोग हार कर चुप कर जाते हैं। कोई गुनगुनाता है - ''इस भरी दुनिया में कोई भी हमारा न हुआ। गैर तो गैर हैं अपनो का सहारा न हुआ।''
पानी के लिए भटक रहे हैं लोग। इस घर से उस घर। इस मुहल्ले से उस मुहल्ले। एक एक तरफ पानी की बर्बादी दीखती है तो दूसरी तरफ सूखा। पानी बर्बाद करने वालों को बुजुर्ग लोग सलाह देते हैं -
रहिमन पानी राखिए,बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरै, मोती, मानस चून।
नए जमाने के लोगों को दोहा समझ में नहीं आता। चोलीवाला गीत होता तो उसके पीछे का दर्शन समझ भी लेते। गंभीर दर्शन के लिए उतना दिमाग भी तो चाहिए। दिमाग दूरदर्शन के विज्ञापनों को समझने में लग जाता है। बचा-खुचा एक दूसरे की चुगली-चकारी में या फिर टांग खींचने में। पानी का दर्शन बड़ा अजीब है। 'पानी रे पानी तेरा रंग कैसा, जिसमें मिला दो लगे उस जैसा' लगता है पानी अवसरवादी चमचा है। जिस नेता के साथ चिपका, उसके जैसा हो गया। जो लोग पानी के साथ टुल्लू-पंप के सहारे अवैध संबंध बना लेते हैं, वे सुखी रहते हैं। टुल्लूपंपधारी लोगों की लोग निंदा करते हैं और टुल्लू पंप का स्वामी टुल्लू पंप से कहता है - ''आजकल तेरे मेर प्यार के चर्चे हर ज़ुबान पर, सबको मालूम है और सबको खबर हो गई।''
जल संकट के घनघोर दौर में जिनका कोई नहीं उनका तो खुदा होता है। वे जब प्रार्थना करते हैं, तब पानी बरस पड़ता है और पानी बरसते ही समस्या धीरे-धीरे समाप्त होने लगती है। अफसर लोगों की छाती जुड़ाती है। जल-पीडि़तों की आत्माएं तृप्त होती हैं। मछली को जैसे जल मिल जाता है। भूखे को जैसे खाना मिल जाता है और उन अफसरों की जेबें भी गरम हो जात है, जिन्होंने जल संकट को दूर करने की योजनाएं बनाई थी। बरसात के कारण योजनाएं पानी में मिल जाती हैं। और अफसरों की जेबें गरम हो जाती है। वे कहते हैं- 'बरखा पानी जरा जम के बरसो, कमाई का मौका जा न पाए, इस तरह बरसो।''
आम आदमी सोचता है, इस साल तो हालात नहीं सुधरे, अगले साल ज़रूर सुधर जाएंगे।
ऐसा अच्छा-अच्छा सोचते उसका पूरा जीवन बीत जाता है मगर सुख नहीं मिलता। हालात नहीं सुधरते। नेता सुधरें तो हालात सुधरें। अफसर सुधरे तो हालात सुधरें। नेता-अफसर बोलते हैं - ''हम नहीं सुधरेंगे।' पानी हो तब न। इन्हें पानी की ज़रूरत भी नहीं। इनका काम तो चुल्लू भर पानी से चल जाता है। बेशर्मी का पर्याय बने लोगों को बेशर्मी ही रास आती है। बेशर्मी देख कर ये गा उठते हैं - 'तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त, तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त।'
मस्त जी..
जवाब देंहटाएंपानी रे पानी, तेरा रंग कैसा....।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब पंकज भाई ! शुभकामनायें आपको !!
जवाब देंहटाएंगहरा और सार्थक व्यंग्य।
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अंतरिक्ष में वैलेंटाइन डे।
अंधविश्वास:महिलाएं बदनाम क्यों हैं?
BAHUT SUNDAR ...
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