''उफ् ये आम आदमी भी न..? मिस्टर मनमोहन, व्हॉट डू यू थिंक अबाउट दिस डर्टी कॉमन मेन?'' संसद के गलियारे में श्रीमान् ''क'' ने अपनी बात शुरू की, ''जिसे देखो, इन दिनों महंगाई को रो रहा है। हम यहाँ ग्लोबल वार्मिंग की चिंता करने के लिए विदेश जा-जा कर टेंशनाएँ जा रहे हैं और ये ससुरा आम आदमी कहता है, पेट्रोल के दाम बढ़ गए, गैस की कीमतें बढ़ गई, केरोसीन के भाव भी चढ़ गए। बहुत पीछे है अभी अपनी कंट्री, क्यों मनमोहन, ठीक कह रिया हूँ न?''
''येस बॉस, यू आर सेइंग करेक्ट, आखिर कब अपनी कंट्री मैच्योर होगी?'' मिस्टर ''ख'' मुसकराये, ''यूं नो, महंगाई तो होतीच्च है बढऩे के लिए। जिनकी बच्चियों की हाइट नहीं बढ़ती, वे लोग टोटके के लिए अपनी बच्चियों का नाम महंगाई ही रख देते हैं। बच्ची की हाइट फटाफट-फौरन-क्विकली बढऩे लगती है। इतनी मस्त-मस्त चीज है यह महंगाई। लेकिन लोग समझें तब न। धरना देंगे, प्रदर्शन करेंगे। शिट्ट। देश का माहौल खराब करेंगे।''
''ठीक बोलते हो यार, 'ख'', पास ही खड़े श्रीमंत ''ग'' ने दाँत खोदते हुए कहा, '' इस कारण बेचारे पुलिसवालों को कितनी तकलीफ होती है। आराम से बैठे रोटी तोड़ रहे होतें हैं, मगर काम पर लगना पड़ता है। डंडे चलाने पड़ते हैं। हाथ में दर्द हो जाता है सिर फोड़ते-फोड़ते। लेकिन आम आदमी को ये सब थोड़े न समझ में आता है।''
''हाँ, तभी तो है यह आम आदमी। इतनी समझ होती तो वह हमारे जैसा बड़ा नेता न बन जाता। फिर भी वी शुड अवेर अबाउट दिस प्रॉब्लम। संसद में बहस करवाएँ। साक्षरता अभियान चलाएँ।''
''ठीक बात है'', ''च'' ने डकारते हुए कहा, ''साक्षरता अभियान मतलब घोटाला अभियान होता है,फिर भी कुछ न कुछ तो लाभ मिलेगा ही। लोग समझदार होंगे। तो हमें शासन करने में मजा आएगा।''
''कुछ न कुछ करते हैं।'' ''क'' ने अपना संसदीय अनुभव बखान करते हुए कहा, ''अपने लोगों की कमाई का जरिया बंद नहीं होना चाहिए। इस देश में बहुत-से निर्माण-कार्य चंद लोगों की कमाई के लिए शुरू किए जाते हैं। केंद्र से लेकर राज्य तक यही हो रहा है। यह कितनी बड़ी सोच है। देश को पूँजीवादी बनाना है तो निर्माण कार्य की व्यवस्था से बड़ी कोई चीज नहीं। आखिर कुछ लोग तो अमीर हो रहे हैंन? मंत्री, अफसर,चमचे, व्यापारी ये सब लोग लाल हो रहे हैं। खुशहाल हो रहे हैं। बेशक अब आम लोग कंगाल हो रहे हैं। मगर व्हाट कैन वी डू? कुछ पाने के लिए कुछ तो खोना ही पड़ता है। गाँधीजी भी यही सब समझाने के बाद गोली खाए थे।''
क, ख,ग, और घ आदि जोर से हँस पड़े। उनकी हँसी के खतरनाक टुकड़े छितरा कर इधर-उधर बिखर गए तो संसद भवन की दीवारें सहम गईं। सबने अपने आपको संभाला। वैसे भी इन दीवारों की आदत-सी पड़ गई हैं। अकसर हँसी, अक्सर गाली-गलौच, अक्सर नारेबाजी, अक्सर हो-हल्ला आदि-आदि झेलती रहती हैं। कभी-कभार मक्कार हँसी भी बर्दाश्त करनी पड़ती है।
''लेकिन महंगाई से निपटने का कोई उपाय तो करे वरना लोग हमारा जीना हराम कर देंगे'', ''ग'' ने अपने अतीत के दुखद अनुभव को याद करते हुए कहा, ''इस देश का आम आदमी खतरनाक होता है। पीछे पड़ जाता है। एक को मारो तो दस सामने आ जाते हैं। किस किस का मुँह बंद करें, किस-किस पर डंडे बरसाएँ। कुछ करो। लॉलीपॉप थमाओ। कुछ नाटक-नौटंकी जरूरी है। तभी लोग शांत होंगे।''
''हूँ'', श्रीमान ''क'' जमीन को घूर कर कुछ सोचने लगे, और फिर बोले, '' ऐसा करते हैं भोले, महँगाई में फिप्टी परसेंट कटौती कर देते हैं। जनता खुश, हम भी खुश?''
''व्हाट एन आइडिया सर जी...पैर जी'', मिस्टर ''ख'' चहकते हुए बोले, ''तभी तो आप को हमने अपना नेता चुना है। क्या खुराफाती दिमाग पाया है। कहाँ से आयात किया है? इटली से कि अमरीका से? जय हो। वाह मजा आ गया। पुराना फार्मूला है, मगर काम आते रहता है। इसे जल्दी लागू करो। देखो आम आदमी कैसे गद्गदाता है। आपस में मिठाई बाँट देगा। चार रुपए बढ़ा कर दो रुपए वापस ले लो। उसी में खुश दो रुपए कम हो गए, फिर भी बढ़ा हुआ है, लेकिन वह भूल जाता है। उसके लिए तो दो रुपए कम किया गया है, यही बड़ी बात हो जाती है।''
''यार मिस्टर 'क' , आम आदमी की महंगाई फिप्टी परसेंट तो कम हो जाएगी, लेकिन इस महँगाई से हम लोग भी तो जूझ रहे हैं। इसका कुछ करो।''
'ख' की बात सुन कर 'क', 'ग' और 'घ' भी गदगद हो गए। इतना सुनना था, कि पास ही टहल रहे विरोधी विचारधारा 'च', 'छ','ज', और 'झ' भी लपक कर पास आ गए। दूर खड़े हो कर कान लगा कर वार्ता सुन रहे 'ट' , 'ठ', 'ड','ढ' और 'ण' भी दौड़ कर पास आ गए। इन लोगों की 'क','ख','ग' और 'घ' से कभी पटी नहीं, लेकिन अपने काम की बात सुनकर फौरन आ गए और मुसकराते हुए कहने लगे,''हाँ भाई,हमारे लिए कुछ करो। कुछ करो। बहुत बढ़ गई है महंगाई। बढ़वाओ हमारे वेतन और भत्ते।''
''केवल वेतन और भत्ते?'' मिस्टर 'क' भड़क गए, ''कितनी अधूरी सोच है तुम लोगों की। कौनसे पिछड़े क्षेत्र से आए हो यार? अरे, सुविधाओं की माँग भी करो। चलो अंदर, हम लोग मिल-जुल कर अपना वेतन-भत्ता, सुविधाएँ सब बढ़वा लेते हैं। एक-दो गुना नहीं, पाँच गुना।''
''पांच गुना? बाप रे? इतना बढ़ जाएगा?''
''यार, ऐसी कोई व्यवस्था नहीं हो सकती, कि देश में महंगाई न बढ़े?'' अचानक 'फ', 'ब', 'भ' और 'म' का नेतृत्व करने वाले ''प'' के मन में आम आदमी के प्रति दया भाव जगी। ''प'' की बात सुनकर सब के सब एक-दूसरे को देख कर हँसने लगे। 'प' को अपनी छोटी सोच पर ग्लानि हुई। जब सारे लोग अपने हित का चिंतन कर रहे हैं, तो ये ससुरा आम आदमी की सोच रहा है?
'क' ने ज्ञान दिया, ''अरे लल्लू, हम ही तो आम आदमी हैं। आम आदमी हमें चुनता है तो हम हुए आम आदमी। हमें कुछ मिलेगा मतलब आम आदमी को मिलेगा। क्यो भाइयो, ठीक कह रिया हूँ न?''
सब जोर से हंस पड़े और एक साथ बोले -''ठीक कह रहे हो...''
ये सारी आवाजें संसद की दीवारों से टकरा कर पूरे देश में फैल गई। हर जगह यही आवाज गूँजने लगी-''ठीक कह रहे हो...ठीक कह रहे हो।''
सारे नेता संसद भवन में घुसे और अपना वेतन-भत्ता आदि पाँच गुना बढ़वा कर बाहर निकले। फिर विपक्ष ने पक्ष को मुस्करा कर आँख मारी और जैसा कि भीतर ही तय हो गया था, बाहर निकल कर ''सरकार मुर्दाबाद'' का नारा-खेल खेला जाएगा, सो शुरू हो गया। देश में जगह-जगह धरना-प्रदर्शन शुरू हो गए। यह देख कर फिर क दुखी हो कर बोले- ''मिस्टर 'ख', इस देश के आम आदमी का क्या होगा? वह कब सुधरेगा?''
'ख' ने कहा- ''आइ थिंक, मुश्किल है इसका सुधरना। बस, डंडे तैयार रखो।''
दोनों हँस पडे। इनकी हँसी देखकर इस बार संसद की दीवारे सहमी नहीं, शर्मशार हो गईं।
''येस बॉस, यू आर सेइंग करेक्ट, आखिर कब अपनी कंट्री मैच्योर होगी?'' मिस्टर ''ख'' मुसकराये, ''यूं नो, महंगाई तो होतीच्च है बढऩे के लिए। जिनकी बच्चियों की हाइट नहीं बढ़ती, वे लोग टोटके के लिए अपनी बच्चियों का नाम महंगाई ही रख देते हैं। बच्ची की हाइट फटाफट-फौरन-क्विकली बढऩे लगती है। इतनी मस्त-मस्त चीज है यह महंगाई। लेकिन लोग समझें तब न। धरना देंगे, प्रदर्शन करेंगे। शिट्ट। देश का माहौल खराब करेंगे।''
''ठीक बोलते हो यार, 'ख'', पास ही खड़े श्रीमंत ''ग'' ने दाँत खोदते हुए कहा, '' इस कारण बेचारे पुलिसवालों को कितनी तकलीफ होती है। आराम से बैठे रोटी तोड़ रहे होतें हैं, मगर काम पर लगना पड़ता है। डंडे चलाने पड़ते हैं। हाथ में दर्द हो जाता है सिर फोड़ते-फोड़ते। लेकिन आम आदमी को ये सब थोड़े न समझ में आता है।''
''हाँ, तभी तो है यह आम आदमी। इतनी समझ होती तो वह हमारे जैसा बड़ा नेता न बन जाता। फिर भी वी शुड अवेर अबाउट दिस प्रॉब्लम। संसद में बहस करवाएँ। साक्षरता अभियान चलाएँ।''
''ठीक बात है'', ''च'' ने डकारते हुए कहा, ''साक्षरता अभियान मतलब घोटाला अभियान होता है,फिर भी कुछ न कुछ तो लाभ मिलेगा ही। लोग समझदार होंगे। तो हमें शासन करने में मजा आएगा।''
''कुछ न कुछ करते हैं।'' ''क'' ने अपना संसदीय अनुभव बखान करते हुए कहा, ''अपने लोगों की कमाई का जरिया बंद नहीं होना चाहिए। इस देश में बहुत-से निर्माण-कार्य चंद लोगों की कमाई के लिए शुरू किए जाते हैं। केंद्र से लेकर राज्य तक यही हो रहा है। यह कितनी बड़ी सोच है। देश को पूँजीवादी बनाना है तो निर्माण कार्य की व्यवस्था से बड़ी कोई चीज नहीं। आखिर कुछ लोग तो अमीर हो रहे हैंन? मंत्री, अफसर,चमचे, व्यापारी ये सब लोग लाल हो रहे हैं। खुशहाल हो रहे हैं। बेशक अब आम लोग कंगाल हो रहे हैं। मगर व्हाट कैन वी डू? कुछ पाने के लिए कुछ तो खोना ही पड़ता है। गाँधीजी भी यही सब समझाने के बाद गोली खाए थे।''
क, ख,ग, और घ आदि जोर से हँस पड़े। उनकी हँसी के खतरनाक टुकड़े छितरा कर इधर-उधर बिखर गए तो संसद भवन की दीवारें सहम गईं। सबने अपने आपको संभाला। वैसे भी इन दीवारों की आदत-सी पड़ गई हैं। अकसर हँसी, अक्सर गाली-गलौच, अक्सर नारेबाजी, अक्सर हो-हल्ला आदि-आदि झेलती रहती हैं। कभी-कभार मक्कार हँसी भी बर्दाश्त करनी पड़ती है।
''लेकिन महंगाई से निपटने का कोई उपाय तो करे वरना लोग हमारा जीना हराम कर देंगे'', ''ग'' ने अपने अतीत के दुखद अनुभव को याद करते हुए कहा, ''इस देश का आम आदमी खतरनाक होता है। पीछे पड़ जाता है। एक को मारो तो दस सामने आ जाते हैं। किस किस का मुँह बंद करें, किस-किस पर डंडे बरसाएँ। कुछ करो। लॉलीपॉप थमाओ। कुछ नाटक-नौटंकी जरूरी है। तभी लोग शांत होंगे।''
''हूँ'', श्रीमान ''क'' जमीन को घूर कर कुछ सोचने लगे, और फिर बोले, '' ऐसा करते हैं भोले, महँगाई में फिप्टी परसेंट कटौती कर देते हैं। जनता खुश, हम भी खुश?''
''व्हाट एन आइडिया सर जी...पैर जी'', मिस्टर ''ख'' चहकते हुए बोले, ''तभी तो आप को हमने अपना नेता चुना है। क्या खुराफाती दिमाग पाया है। कहाँ से आयात किया है? इटली से कि अमरीका से? जय हो। वाह मजा आ गया। पुराना फार्मूला है, मगर काम आते रहता है। इसे जल्दी लागू करो। देखो आम आदमी कैसे गद्गदाता है। आपस में मिठाई बाँट देगा। चार रुपए बढ़ा कर दो रुपए वापस ले लो। उसी में खुश दो रुपए कम हो गए, फिर भी बढ़ा हुआ है, लेकिन वह भूल जाता है। उसके लिए तो दो रुपए कम किया गया है, यही बड़ी बात हो जाती है।''
''यार मिस्टर 'क' , आम आदमी की महंगाई फिप्टी परसेंट तो कम हो जाएगी, लेकिन इस महँगाई से हम लोग भी तो जूझ रहे हैं। इसका कुछ करो।''
'ख' की बात सुन कर 'क', 'ग' और 'घ' भी गदगद हो गए। इतना सुनना था, कि पास ही टहल रहे विरोधी विचारधारा 'च', 'छ','ज', और 'झ' भी लपक कर पास आ गए। दूर खड़े हो कर कान लगा कर वार्ता सुन रहे 'ट' , 'ठ', 'ड','ढ' और 'ण' भी दौड़ कर पास आ गए। इन लोगों की 'क','ख','ग' और 'घ' से कभी पटी नहीं, लेकिन अपने काम की बात सुनकर फौरन आ गए और मुसकराते हुए कहने लगे,''हाँ भाई,हमारे लिए कुछ करो। कुछ करो। बहुत बढ़ गई है महंगाई। बढ़वाओ हमारे वेतन और भत्ते।''
''केवल वेतन और भत्ते?'' मिस्टर 'क' भड़क गए, ''कितनी अधूरी सोच है तुम लोगों की। कौनसे पिछड़े क्षेत्र से आए हो यार? अरे, सुविधाओं की माँग भी करो। चलो अंदर, हम लोग मिल-जुल कर अपना वेतन-भत्ता, सुविधाएँ सब बढ़वा लेते हैं। एक-दो गुना नहीं, पाँच गुना।''
''पांच गुना? बाप रे? इतना बढ़ जाएगा?''
''यार, ऐसी कोई व्यवस्था नहीं हो सकती, कि देश में महंगाई न बढ़े?'' अचानक 'फ', 'ब', 'भ' और 'म' का नेतृत्व करने वाले ''प'' के मन में आम आदमी के प्रति दया भाव जगी। ''प'' की बात सुनकर सब के सब एक-दूसरे को देख कर हँसने लगे। 'प' को अपनी छोटी सोच पर ग्लानि हुई। जब सारे लोग अपने हित का चिंतन कर रहे हैं, तो ये ससुरा आम आदमी की सोच रहा है?
'क' ने ज्ञान दिया, ''अरे लल्लू, हम ही तो आम आदमी हैं। आम आदमी हमें चुनता है तो हम हुए आम आदमी। हमें कुछ मिलेगा मतलब आम आदमी को मिलेगा। क्यो भाइयो, ठीक कह रिया हूँ न?''
सब जोर से हंस पड़े और एक साथ बोले -''ठीक कह रहे हो...''
ये सारी आवाजें संसद की दीवारों से टकरा कर पूरे देश में फैल गई। हर जगह यही आवाज गूँजने लगी-''ठीक कह रहे हो...ठीक कह रहे हो।''
सारे नेता संसद भवन में घुसे और अपना वेतन-भत्ता आदि पाँच गुना बढ़वा कर बाहर निकले। फिर विपक्ष ने पक्ष को मुस्करा कर आँख मारी और जैसा कि भीतर ही तय हो गया था, बाहर निकल कर ''सरकार मुर्दाबाद'' का नारा-खेल खेला जाएगा, सो शुरू हो गया। देश में जगह-जगह धरना-प्रदर्शन शुरू हो गए। यह देख कर फिर क दुखी हो कर बोले- ''मिस्टर 'ख', इस देश के आम आदमी का क्या होगा? वह कब सुधरेगा?''
'ख' ने कहा- ''आइ थिंक, मुश्किल है इसका सुधरना। बस, डंडे तैयार रखो।''
दोनों हँस पडे। इनकी हँसी देखकर इस बार संसद की दीवारे सहमी नहीं, शर्मशार हो गईं।
पंकज जी तभी तो देश के इतिहास मे पहली बार तेल ,प्याज एक ही दाम पर बिके ,पर लोग कब समझेँगे ऐसे मौके बहुत कम आते हैँ । बढने दो ,क्या हो रहा है बढने के लिए लोग ना जाने क्या करते रहते हैँ?दूध वाला दुध मे पानी,ठेकेदार सिमेँट मे बजरी,फिर नेता भाईसाब पिछे क्यो रहेँ । एक शेर अर्ज किया है
जवाब देंहटाएं"ये घोटाले नही आसां ,बस इतना समझ लिजे ,एक माल का दरिया है और डूब के जाना है"
अच्छा व्यंग्य, बधाई।
जवाब देंहटाएंदिस डर्टी कॉमन मेन n hote to phir ho gayee thi Mr. ki raajniti...
जवाब देंहटाएंbahut badiya yatharkprak vyang...
आज 18/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
hame to mehgaai ne mara aur kisi me kaha dam tha.mere paas tha bas paani unke paas aaloo dam tha
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