26 फ़रवरी 2011

मजबूरी का नाम...?

लपेटनराम ने कहा-'' मै बहुत मजबूर हूँ''. 
इतना सुनना था, कि समेटनराम बोल पडा-''अरे मतलब तुम्हारा फ्यूचर ब्राईट है? तुम इस देश के प्रधानमंत्री भी बन सकते हो''. 
लपेटनराम चौंका-''तो क्या जो मजबूर होता है, वह प्रधानमंत्री बन सकता है?''
समेटनराम मुस्करा कर बोले- ''हाँ भोले, यही संभावना है. यही नियति है. तुम जिस पीड़ा के साथ बोल रहे हो, बस वही पीड़ा दिखानी चाहिए चेहरे पर'' 
लपेटनराम गदगद- ''मतलब यह है, कि  मेरे दिन फिरेंगे?''
समेटनराम ने कहा-'' जब घूरे के दिन फिर सकते है तो तुम्हारे भी फिर सकते हैं''
लपेटनराम को व्यंग्य ज्यादा नहीं समझता. उसने कहा- '' धन्यवाद भाई, तारीफ के लिये. अच्छा ये बताओ, मुझे मजबूर होने के अलावा और क्या-क्या करना होगा?'' 
समेटनराम ने कहा - ''तुम तो बस इसी मजबूरी को बनाये रखो. एक दिन कोई न कोई तुम्हारे पास आयेगा और कहेगा, क्या आप प्रधानमंत्री बनना चाहते है?' तब तुम चट से कह देना-''हाँ, वो बन सकते हैं तो हम क्यों नहीं. क्योंकि हम किसी से कम नहीं''.
  वह दिन और आज का दिन है, लपेटनराम फूला-फूला फिरता है, कि एक दिन वह भी प्रधानमंत्री बन सकता है. यही तो कहना है न कि 
देश में भ्रष्टाचार फ़ैल रहा है?...मै मजबूर हूँ. 
घोटाले हो रहे हैं? मजबूर हूँ. 
महंगाई बढ़ रही है?..मजबूर हूँ. 
नक्सल समस्या बढ़ती जा रही है? मै मजबूर हूँ. 
''मजबूर'' शब्द पर जोर देना है. ऐसा करने से तुम राजनीति में सफल हो सकते हो. जनता को उल्लू बनाने के लिये मजबूर हो जाना बड़ी कला है. जो नेता जितना बड़ा  मजबूर,  उतना बड़ा कहलाता है. वैसे भी इस वक्त देश में मजबूरवाद चल रहा है. दिल्ली से लेकर झुमरीतलैया तक हर कोई मजबूर नज़र आरहा है. पुलिस मजबूर है क्योंकि अपराधी मजबूत है. अफसर मजबूर है क्योंकि व्यापारी मजबूत है. सड़क कमजोर है क्योंकि ठेकेदार मजबूत है. जनता का सिर मजबूर है क्योंकि डंडा मजबूत है. छात्र नक़ल मारने में मजबूत है क्योंकि शिक्षक मजबूर है. इस देश में मजबूर और मजबूत का मुकाबला है. हमारे प्रधानमंत्री कमजोर हैं क्योंकि गठबंधन कि सरकार है. गठबंधन हो जाये तो मजबूर होना ही पड़ता है. पति मजबूर हो जाता है, क्योंकि पत्नी मायके जाने की धमकी देने लगाती है. गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री की हालत भी पति जैसी हो जाती है. कब कौन-सा दल सरकार के लिये मुसीबत बन जाये, कहा नहीं जा सकता, इसलिये कोई मंत्री घोटाला कर रहा है तो आँख मूँद लो. तुलसीदास जी ने भी यही सन्देश दिया है,कि 'मून्दहूँ आँख कतहू कोऊ नाहीं. इसीलिये अब तुकबंदी चल रही है, कि 
गठबंधन मजबूरी है, 
घोटाला बहुत ज़रूरी है. 
कभी मजबूरी का नाम महात्मा गांधी हुआ करता था, अब मजबूरी का नाम प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह है. इसलिये अगर लपेटनराम की संभावना है कि वह भी प्रधानमंत्री बन सकता है, तो गलत नहीं है.

12 फ़रवरी 2011

चुल्लू भर पानी तो मुहैया हो

लोग संकट को भी संगीत की स्वर लहरियों के साथ जी लेते हैं। घरेलू परेशानियाँ होती हैं तो गा लेते हैं - ''राही मनवा दुख की चिंता क्यों सताती है, दुख तो अपना साथी है।''  और उसके बाद ''दुख भरे दिन बीते रे भैया, अब सुख आयो रे'' गाने का भी अवसर आता है।
पानी का संकट होता है तो लोग गाते हैं। 'अल्ला मेघ दे, पानी दे, अल्ला मेघ दे।' और सचमुच मेघ चला आता है- 'तुमने पुकार और हम चले आए' वाले अंदाज में लोग नाच पड़ते हैं। जैसे मयूर नाचता है। बूढ़े गाते हैं - 'बरसो राम धड़ाके से'। जवानियाँ गाती हैं, 'पानी में जले मोरा गोरा बदन'। बच्चे गाते हैं, 'पानी बरसे झमा-झम-झम, मोर नाचे छम-छम-छम।'
भीषण गरमी में जब आग बरसती है और लोगों का शरीर जलने लगता है, घर के नल की हालत यूं रहती है कि दो-चार अमृत-बूँद टपक गई तो बहुत है। लोग कभी नगर निगम वालों से तो कभी ऊपर वाले की ओर देख कर बोल पड़ते हैं - 'प्यास लिए मनवा हमारा ये तरसे, एक बूंद तेरी दया के बरसे।' लेकिन बूँद के लिए लोग तरसते रह जाते हैं, वह नहीं बरसती। सौ चक्कर लगाओ, तब कहीं टैंकर-देव के दर्शन होते हैं और मोहल्ले वाले नाच उठते हैं,  'हाय, मेरा टैंकर घर आया ओ राम जी।'  और फिर पहले हम, पहले हम की सिर-फुटव्वल। एक भाई दूसरे भाई से, एक बाई दूसरी बाई से बोलती है- 'हमसे ना टकराना, हमसे है जमाना' और 'तेरे जेसे तो आते-जाते रहते हैं।'
टैंकर की हालत उस चलनी की तरह होती  है जिसमें जिहत्तर छेद होते हैं। आते-आते कोई शायरनुमा पड़ोसी टैंकर की हालत पर दुष्यंत कुमार को याद करते हुए कहता है - 'यहाँ तक आते-आते खाली हो जाते हैं सब टैंकर, हमें मालूम  है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा।'  उनका इशारा पार्षदों, नगर निगम के दूसरे अफसरों समेत दाद किस्मके लोगों और नेताओं की तरफ होता है।
टैंकर से कुछ बाल्टियां पानी टपकने पर दुखी लोग टैंकरवाले से पूछते हैं, ''क्यों जी, ये क्या तमाशा है, इतना कम पानी?''
टैंकर वाला मुसकरा कर कहता है - '' मैं तो पानी भरवा रहा था...मैं तो टैंकर को ला रहा था। मैं तो सीधे ही आ रहा था... सारा पानी गिर जाए तो मैं क्या करूँ ।''
लोगों ने भी मुंडी हिलाई। इतने सारे छेद हों तो पानी का भेद कैसे बाहर नहीं आएगा। टैंकर वाले को लोगों ने धन्यवाद दिया कि तुम यहाँ तक आए। कल भी आना। परसों भी आना। हम लोगों की प्यास बुझाना। मोहल्ले के लोग अफसरों से मिलते हैं, पार्षदों से मिलते हैं लेकिन सब कूलर-मगन हैं। सुनने को खाली  नहीं। लोग हार कर चुप कर जाते हैं। कोई गुनगुनाता है - ''इस भरी दुनिया में कोई भी हमारा न हुआ। गैर तो गैर हैं अपनो का सहारा न हुआ।''
पानी के लिए भटक रहे हैं लोग। इस घर से उस घर। इस मुहल्ले से उस मुहल्ले। एक एक तरफ पानी की बर्बादी दीखती है तो दूसरी तरफ सूखा। पानी बर्बाद करने वालों को बुजुर्ग लोग सलाह देते हैं -
रहिमन पानी राखिए,बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरै, मोती, मानस चून।

नए जमाने के  लोगों को दोहा समझ में नहीं आता। चोलीवाला गीत होता तो उसके पीछे का दर्शन समझ भी लेते। गंभीर दर्शन के लिए उतना दिमाग भी तो चाहिए। दिमाग दूरदर्शन के विज्ञापनों को समझने में लग जाता है। बचा-खुचा एक दूसरे की चुगली-चकारी में या फिर टांग खींचने में। पानी का दर्शन बड़ा अजीब है। 'पानी रे पानी तेरा रंग कैसा, जिसमें मिला दो लगे उस जैसा' लगता है पानी अवसरवादी चमचा है। जिस नेता के साथ चिपका, उसके जैसा हो गया। जो लोग पानी के साथ टुल्लू-पंप के सहारे अवैध संबंध बना लेते हैं, वे सुखी रहते हैं। टुल्लूपंपधारी लोगों की लोग निंदा करते हैं और टुल्लू पंप का स्वामी टुल्लू पंप से कहता है - ''आजकल तेरे मेर प्यार के चर्चे हर ज़ुबान पर, सबको मालूम है और सबको खबर हो गई।''
जल संकट के घनघोर दौर में जिनका कोई नहीं उनका तो खुदा होता है। वे जब प्रार्थना करते हैं, तब पानी बरस पड़ता है और पानी बरसते ही समस्या धीरे-धीरे समाप्त होने लगती है। अफसर लोगों की छाती जुड़ाती है। जल-पीडि़तों की आत्माएं तृप्त होती हैं। मछली को जैसे जल मिल जाता है। भूखे को जैसे खाना मिल जाता है और उन अफसरों की जेबें भी गरम हो जात है, जिन्होंने जल संकट को दूर करने की योजनाएं बनाई थी। बरसात के कारण योजनाएं पानी में मिल जाती हैं। और अफसरों की जेबें गरम हो जाती है। वे कहते हैं- 'बरखा पानी जरा जम के बरसो, कमाई का मौका जा न पाए, इस तरह बरसो।''
आम आदमी सोचता है, इस साल तो हालात नहीं सुधरे, अगले साल ज़रूर सुधर जाएंगे।
ऐसा अच्छा-अच्छा सोचते उसका पूरा जीवन बीत जाता है मगर सुख नहीं मिलता। हालात नहीं सुधरते। नेता सुधरें तो हालात सुधरें। अफसर सुधरे तो हालात सुधरें। नेता-अफसर बोलते हैं - ''हम नहीं सुधरेंगे।' पानी हो तब न। इन्हें पानी की ज़रूरत भी नहीं। इनका काम तो चुल्लू भर पानी से चल जाता है। बेशर्मी का पर्याय बने लोगों को बेशर्मी ही रास आती है। बेशर्मी देख कर ये गा उठते हैं - 'तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त, तू चीज बड़ी है मस्त-मस्त।'

9 फ़रवरी 2011

मिस्टर मनमोहन, उफ् ये आम आदमी भी न..?

''उफ् ये आम आदमी भी न..? मिस्टर मनमोहन, व्हॉट डू यू थिंक अबाउट दिस डर्टी कॉमन मेन?'' संसद के गलियारे में श्रीमान्  ''क'' ने अपनी बात शुरू की, ''जिसे देखो, इन दिनों महंगाई को रो रहा है। हम यहाँ ग्लोबल वार्मिंग की चिंता करने के लिए विदेश जा-जा कर टेंशनाएँ जा रहे हैं और ये ससुरा आम आदमी कहता है, पेट्रोल के दाम बढ़ गए, गैस की कीमतें बढ़ गई, केरोसीन के भाव भी चढ़ गए। बहुत पीछे है अभी अपनी कंट्री, क्यों मनमोहन, ठीक कह रिया हूँ न?''
''येस बॉस, यू आर सेइंग करेक्ट, आखिर कब अपनी कंट्री मैच्योर होगी?'' मिस्टर ''ख'' मुसकराये, ''यूं नो, महंगाई तो होतीच्च है बढऩे के लिए। जिनकी बच्चियों की हाइट नहीं बढ़ती, वे लोग टोटके के लिए अपनी बच्चियों का नाम महंगाई ही रख देते हैं। बच्ची की हाइट फटाफट-फौरन-क्विकली बढऩे लगती है। इतनी मस्त-मस्त चीज है यह महंगाई। लेकिन लोग समझें तब न। धरना देंगे, प्रदर्शन करेंगे। शिट्ट। देश का माहौल खराब करेंगे।''
''ठीक बोलते हो यार, 'ख'', पास ही खड़े श्रीमंत ''ग''  ने दाँत खोदते हुए कहा, '' इस कारण बेचारे पुलिसवालों को कितनी तकलीफ होती है। आराम से बैठे रोटी तोड़ रहे होतें हैं, मगर काम पर लगना पड़ता है। डंडे चलाने पड़ते हैं। हाथ में दर्द हो जाता है सिर फोड़ते-फोड़ते। लेकिन आम आदमी को ये सब थोड़े न समझ में आता है।''
''हाँ, तभी तो है यह आम आदमी। इतनी समझ होती तो वह हमारे जैसा बड़ा नेता न बन जाता। फिर भी वी शुड अवेर अबाउट दिस प्रॉब्लम। संसद में बहस करवाएँ। साक्षरता अभियान चलाएँ।''
''ठीक बात है'', ''च'' ने डकारते हुए कहा, ''साक्षरता अभियान मतलब घोटाला अभियान होता है,फिर भी कुछ न कुछ तो लाभ मिलेगा ही। लोग समझदार होंगे। तो हमें शासन करने में मजा आएगा।''
''कुछ न कुछ करते हैं।''  ''क''  ने अपना संसदीय अनुभव बखान करते हुए कहा, ''अपने लोगों की कमाई का जरिया बंद नहीं होना चाहिए। इस देश में बहुत-से निर्माण-कार्य चंद लोगों की कमाई के लिए शुरू किए जाते हैं। केंद्र से लेकर राज्य तक यही हो रहा है। यह कितनी बड़ी सोच है। देश को पूँजीवादी बनाना है तो निर्माण कार्य की व्यवस्था से बड़ी कोई चीज नहीं। आखिर कुछ लोग तो अमीर हो रहे हैंन? मंत्री, अफसर,चमचे, व्यापारी ये सब लोग लाल हो रहे हैं। खुशहाल हो रहे हैं। बेशक अब आम लोग कंगाल हो रहे हैं। मगर व्हाट कैन वी डू? कुछ पाने के लिए कुछ तो खोना ही पड़ता है। गाँधीजी भी यही सब समझाने के बाद गोली खाए थे।''
 क, ख,ग, और घ आदि जोर से हँस पड़े। उनकी हँसी के खतरनाक टुकड़े छितरा कर इधर-उधर बिखर गए तो संसद भवन की दीवारें सहम गईं।  सबने अपने आपको संभाला। वैसे भी इन दीवारों की आदत-सी पड़ गई हैं। अकसर हँसी, अक्सर गाली-गलौच, अक्सर नारेबाजी, अक्सर हो-हल्ला आदि-आदि झेलती रहती हैं। कभी-कभार मक्कार हँसी भी बर्दाश्त करनी पड़ती है।
''लेकिन महंगाई से निपटने का कोई उपाय तो करे वरना लोग हमारा जीना हराम कर देंगे'', ''ग''  ने अपने अतीत के दुखद अनुभव को याद करते हुए कहा, ''इस देश का आम आदमी खतरनाक होता है। पीछे पड़ जाता है। एक को मारो तो दस सामने आ जाते हैं। किस किस का मुँह बंद करें, किस-किस पर डंडे बरसाएँ। कुछ करो। लॉलीपॉप थमाओ। कुछ नाटक-नौटंकी जरूरी है। तभी लोग शांत होंगे।''
''हूँ'',  श्रीमान ''क''  जमीन को घूर कर कुछ सोचने लगे, और फिर बोले, '' ऐसा करते हैं भोले, महँगाई में फिप्टी परसेंट कटौती कर देते हैं। जनता खुश, हम भी खुश?''
''व्हाट एन आइडिया सर जी...पैर जी'', मिस्टर ''ख''  चहकते हुए बोले, ''तभी तो आप को हमने अपना नेता चुना है। क्या खुराफाती दिमाग पाया है। कहाँ से आयात किया है? इटली से कि अमरीका से? जय हो। वाह मजा आ गया। पुराना फार्मूला है, मगर काम आते रहता है। इसे जल्दी लागू करो। देखो आम आदमी कैसे गद्गदाता है। आपस में मिठाई बाँट देगा। चार रुपए बढ़ा कर दो रुपए वापस ले लो। उसी में खुश दो रुपए कम हो गए, फिर भी बढ़ा हुआ है, लेकिन वह भूल जाता है। उसके लिए तो  दो रुपए कम किया गया है, यही बड़ी बात हो जाती है।''
''यार मिस्टर 'क' , आम आदमी की महंगाई फिप्टी परसेंट तो कम हो जाएगी, लेकिन इस महँगाई से हम लोग भी तो जूझ रहे हैं। इसका कुछ करो।''
'ख' की बात सुन कर 'क', 'ग' और 'घ' भी गदगद  हो गए। इतना सुनना था, कि पास ही टहल रहे विरोधी विचारधारा 'च', 'छ','ज', और 'झ' भी लपक कर पास आ गए। दूर खड़े हो कर कान लगा कर वार्ता सुन रहे 'ट' , 'ठ', 'ड','ढ' और 'ण' भी दौड़ कर पास आ गए। इन लोगों की 'क','ख','ग' और 'घ' से कभी पटी नहीं, लेकिन अपने काम की बात सुनकर फौरन आ गए और मुसकराते हुए कहने लगे,''हाँ भाई,हमारे लिए कुछ करो। कुछ करो। बहुत बढ़ गई है महंगाई। बढ़वाओ हमारे वेतन और भत्ते।''
''केवल वेतन और भत्ते?'' मिस्टर  'क' भड़क गए, ''कितनी अधूरी सोच है तुम लोगों की। कौनसे  पिछड़े क्षेत्र से आए हो यार? अरे, सुविधाओं की माँग भी करो। चलो अंदर, हम लोग मिल-जुल कर अपना वेतन-भत्ता, सुविधाएँ सब बढ़वा लेते हैं। एक-दो गुना नहीं, पाँच गुना।''
''पांच गुना? बाप रे? इतना बढ़ जाएगा?''
''यार, ऐसी कोई व्यवस्था नहीं हो सकती, कि देश में महंगाई न बढ़े?'' अचानक 'फ', 'ब', 'भ' और 'म' का नेतृत्व करने वाले ''प'' के मन में आम आदमी के प्रति दया भाव जगी। ''प''  की बात सुनकर सब के सब एक-दूसरे को देख कर हँसने लगे। 'प' को अपनी छोटी सोच पर ग्लानि हुई। जब सारे लोग अपने हित का चिंतन कर रहे हैं, तो ये ससुरा आम आदमी की सोच रहा है?
'क' ने ज्ञान दिया, ''अरे लल्लू, हम ही तो आम आदमी हैं। आम आदमी हमें चुनता है तो हम हुए आम आदमी। हमें कुछ मिलेगा मतलब आम आदमी को मिलेगा। क्यो भाइयो, ठीक कह रिया हूँ न?''
सब जोर से हंस पड़े और एक साथ बोले -''ठीक कह रहे हो...''
ये सारी आवाजें संसद की दीवारों से टकरा कर पूरे देश में फैल गई। हर जगह यही आवाज गूँजने लगी-''ठीक कह रहे हो...ठीक कह रहे हो।''
सारे नेता संसद भवन में घुसे और अपना वेतन-भत्ता आदि पाँच गुना बढ़वा कर बाहर निकले। फिर विपक्ष ने पक्ष को मुस्करा कर  आँख मारी और जैसा कि भीतर ही तय हो गया था, बाहर निकल कर ''सरकार मुर्दाबाद''  का नारा-खेल खेला जाएगा, सो शुरू हो गया। देश में जगह-जगह धरना-प्रदर्शन शुरू हो गए। यह देख कर फिर क दुखी हो कर बोले- ''मिस्टर 'ख',  इस देश के आम आदमी का क्या होगा? वह कब सुधरेगा?''
'ख' ने कहा- ''आइ थिंक, मुश्किल है इसका सुधरना। बस, डंडे तैयार रखो।''
दोनों हँस पडे। इनकी हँसी देखकर इस बार संसद की दीवारे सहमी नहीं, शर्मशार हो गईं।

5 फ़रवरी 2011

खाकी वर्दीवाले और जनता भगवान भरोसे

अजब देश की एक कथा है। उस देश की जनता गुंडे-बदमाशों से दुखी थी। उन्होंने ईश्वर को पुकारा। ईश्वर प्रकट हुए। पूछा- ''क्या चाहिए भक्तो।' जनता बोली - ''हमें गुंडे-बदमाशों से बचाओ। ये लोग हमें परेशान करते हैं। हमारी बहू-बेटियों को छेड़ते हैं। प्रभो, कुछ उपाय करो कि इन पर अंकुश लग सके।''
प्रभुजी ने 'तथास्तु' कहा और अंतर्धान हो गए। थोड़ी देर बात खाकी वर्दी वाले कुछ लोग अवतरित हुए।
एक ने कहा - ''हे अजब देश के निवासियो, हम लोगों को प्रभुजी ने आपकी सुरक्षा के लिए धरती पर भेजा है। अब आप आराम से रहिए। हम सब कुछ संभाल लेंगे।''
अजब देश के लोग खुश हो गए। भगवान को धन्यवाद दिया। कुछ दिन तक हालात अच्छे रहे, लेकिन धीरे-धीरे दुर्दिन शुरू हो गए। पहले यहाँ की जनता गुंडे-बदमाशों से दुखी रहती थी। अब खाकी वर्दी वालों से दुखी रहने लगी। लोगों से बेवजह मारपीट करना, महिलाओं को छेडऩा, दुकानों से चीजें उठा लेना और पैसे न देना, सड़क चलते लोगों पर जबरन डंडे बरसाना, रात दस-ग्यारह ब जे घर के सामने टहल रहे लोगों को गालियाँ देना, कानून-व्यवस्था के नाम पर सायरन बजाकर और बंदूकों से लैस होकर गाडिय़ों में घूमना, जब-तब लोगों को धमकाते-चमकाते रहना। शरीफों को पीटना और गुंडे-बदमाशों को अभयदान दे देना। ये सबसहकत देख कर जनता रोने लगी। लोगों ने आपस में विचार-विमर्श किया कि ईश्वर ने ये जो खाकी वर्दी वालों को भेजा है, वे तो गुंडे-बदमाशों से खतरनाक निकले। पहले हम गुंडे-बदमाशों से जूझते थे, अब तो इनसे जूझना पड़ रहा है।
एक ने कहा - ''भई, हम तो बुरे फंसे।''
दूसरा -''इससे तो अच्छे गुंडे-बदमाश ही थे।''
तीसरा - ''टेंशन बढ़ता जा रहा है। ईश्वर को बुलाओ, वही कुछ करेगा।''
अजब देश के लोगों ने प्रार्थना की, कृपाला प्रकट भये। बोले - ''भक्तो, अब क्या परेशानी आन पड़ी ?''
एक बोला -''आपने ये जो खाकी वर्दी वाली सेना भेजी है, उसने तो हमारी नाक में दम कर दिया है। ये तो और और ज्यादा अत्याचारी निकले। इन्हें यहाँ से हटाओ वरना हमारे जीवन का सुख-चैन ही नष्टï हो जाएगा।''
प्रभु बोले - ''लेकिन प्रिय भक्तो, हम इतने सारे लोगों को वापस ले जाकर कहाँ 'एडजस्ट' करेंगे ? स्वर्गलोक तो बढ़ती आबादी के कारण वैसे भी 'हाउसफुल' होता जा रहा है।''
एक भक्त बोला - ''लेकिन ये आपके नये सेवक तो नर्क-लोक के लायक हैं। उन्हें वहीं रखिए। इन्होंने धरती के लोगों को काफी दुखी कर दिया है। इनके आचरण देख कर गुंडे-बदमाश तक पानी पानी हो रहे हैं।''
ईश्वर ने आँख मूँद कर कुछ ध्यान किया फिर बोले -''निसंदेह बहुत बड़ी गलती हो गई है मुझसे। ये जो खाकी वर्दी वाले हैं, इनको मैंने देवदूत समझ कर धरती पर भेजा था। लेकिन इनमें से तो अधिकांश राक्षस हैं, राक्षस। इन्होंने देवदूतों को कैद कर लिया है और उसकी जगह खुद धरती पर आ गए। वही तो मैं कहूँ कि खाकी वर्दी वाले जो स्वर्गलोक में राक्षसों के अत्याचार से सबकी सुरक्षा करते थे, धरती पर आकर अत्याचारी कैसे हो गए?''
अजब देश की जनता ने पूछा - ''प्रभो, आप अपनी गलती को जल्द से जल्द सुधार लें वरना हम लोग तो बर्बाद हो जाएंगे। आपके राक्षसों के किस्से हम लोग सुन चुके हैं। इनके आचरण देख कर हम समझ गए थे कि ये लोग देवदूत नहीं हो सकते। ये तो यमदूत हैं, यमदूत। प्रभो, आप खामोश रहेंगे तो हम लोग कहाँ जाएंगे।''
प्रभुजी ने कहा - ''भक्तजनो, आप चिंतित न हों। ये खाकी वर्दी वाले दरअसल भस्मासुर के  वंशज हैं। भस्मासुर को शंकर भघवान ने आशीर्वाद दिया था कि जिस किसी के सिर पर हाथ रखोगे, वह भस्म हो जाएगा। इनको मैं भस्म नहीं कर सकता। लेकिन इनको नर्क लोक भेजने का कुछ न कुछ बंदोबस्त करना ही पड़ेगा। मैं जा रहा हूँ... भगवान शंकर से 'डिस्कशन' करने।''
भक्त चीखे - ''भगवन, आप जल्दी लौटें, वरना हम लोग धरती के दोहरे अत्याचार के कारण खुदक शी करने पर मजबूर हो जाएँगे।'' भगवन बोले - ''तो क्या सारे के सारे खाकी वर्दी वाले अत्याचारी हैं ?''
भक्त बोले - ''ऐसी बात नहीं है प्रभो। खाकी वर्दी वालों में से दो फीसदी अच्छे लोग भी हैं। ये लोग बदमाशों से रक्षा करते हैं शरीफों की। आदमी से आदमी की तरह व्यवहार करते हैं। इन्हें देख कर लगता है, काश, आपके भेजे गए सारे दूत इसी नस्ल के होते।'' प्रभुजी बोले - ''ठीक कहते हो। मुझे लगता है,जब मैं देवदूतों को धरती भेजने का आदेश दे रहा था, तब यमदूतों ने सुन लिया और वेश बदल कर खाकी वर्दीधारियों के बीच जा घुसे। इसीलिए आप लोगों को तकलीफ हो रही है। खैर..! कोई बात नहीं। मैं स्वर्ग लोक जाकर देवताओं से चर्चा करूंगा। और बहुत जल्दी देवदूतों की खेप भेजने की कोशिश करूँ गा।''
इतना बोलकर भगवान चले गए। अजब देश की जनता इंतजार करती रही कि अब आएँगे...भगवान अब आएँगे, देवदूतों को लाएँगे। यमदूतों को अपने साथ लेकर जाएँगे। जनता फिर से सुखी जीवन बिताएगी लेकिन पता नहीं, ऐसा क्या हुआ कि भगवान नहीं आए, तो नहींच्च आए। जनता इन खाकी वर्दीवालों से निपट नहीं सकती थी। केवल भगवान ही कुछ कर सकते थे इनका। लोग भगवान भरोसे बैठे रह गए। भगवान नहीं लौटे।
ये कथा तो अजब देश की है। अपने यहाँ खाकी वर्दी वाले तो बड़े भले हैं शायद।
एम आई रांग?

3 फ़रवरी 2011

2 फ़रवरी 2011

योगा यानी नया आइटम साँग

पहले सड़कों पर तमाशा दिखाने वाले मदारियों का ड्रेस कोड नहीं होता था। अब वे समझदार हो गए हैं। आजकल वे भगवा ड्रेस में नज़र आते हैं। उस दिन शहर में एक हाइटेक मदारी आया। वह भगवा ड्रेस पहने हुए था। मदारी ने डुगडुगी बजाई । भीड़ जुटी। मदारी ने पापी पेट के लिए सबके सामने अपना खुला पेट घुमाया। एक-दो गुलाटियाँ खाईं। कुछ छोटे-मोटे करामात भी दिखाए। मदारी के साथ उसका बंदर भी था। जैसे ही मदारी ने कहा-चल बजरंगी, कपालभाति कर। बंदर का कमर से गर्दन तक का हिस्सा कलाबाजियाँ खाने लगा। लोगों ने तालियाँ पीटीं। भीड़ में मदारी के लोग भी शामिल थे। पहले उन्होंने तालियाँ पीटीं। उनकी देखा-देखी दूसरे लोग भी पीटने लगे। मदारी हिट हो गया। पहले वह साँप-नेवले की लड़ाई दिखाया करता था। वह आइटम पुराना पड़ गया है। नया आइटम है योग। योग नहीं योगा। योगा इस वक्त का आइटम साँग है। हर छोटे-बड़े मदारी इसी के सहारे रोजी-राटी कमा रहे है। ढंग से पेट घुमाओ। बॉडी की लचक दिखाओ, और दिल में उतर जाओ। बॉलीवुड की तरह यह योगीवुड है।
पहले गली-मुहल्ले में सामान बेचने वाले नज़र आते थे। आजकल योगा वाले नज़र आते हैं। योगा अब कुटीर उद्योग है। बेरोजगारी से त्रस्त युवकों की कमाई का साधन। कहीं नौकरी नहीं मिल रही है तो हरिद्वार चले जाओ। कई बाबा मिल जाएंगे। उनसे योगा के टिप्स ले कर आओ। शरीर को फिट रखने के कुछ फार्मूले समझ लो। फिर भगवा लबादा ओढ़कर मजे से योगा बेचो। हाँ, कुछ श्लोक, कुछ दार्शनिक कविताएँ, कुछ अच्छे विचारों का घोल बना कर पूरा योगा-पैकेज बनाओ। अगर आप हिट न हो जाएँ तो मेरा नाम बदल देना, हाँ। लोगों को लम्बा जीवन चाहिए ताकि भोग जारी रहे। देश और समाज के लिए नहीं, सुंदरियों से मसाज कराने के लिए लोग जि़दा रहना चाहते हैं। स्वस्थ रहेंगे तो भोग करेंगे। भोग के लिए योग इसीलिए रहो निरोग। पैसे वालों के शरीर में रोगों ने घर बना लिया है। हवाई जहाजों में उड़ते हैं लेकिन डरते रहते हैं कि कब प्राण पखेरू उड़ जाएगा। बचने का एक ही उपाय है। असमय मरने से बचना है तो प्राणायाम करो। मदारी समझाता है-योग करो, स्वस्थ रहो। अनुलोम-विलोम करो। कपालभाती करो। भ्रामरी करो। धनवालों को अभी और जीना है। एक बंगले, दो कारें, तीन कारखानों से बात नहीं बन रही। इन सबको चौगुना करना है। यह तभी संभव है जब जान बची रहे। जान है तो जहान है। जान है तो हुस्न के लाखों रंग हैं। जो भी रंग देखना चाहो। इसलिए योगम् शरणम् गच्छामि।
एक कहानी है-अंधा देख नहीं सकता था, लंगड़ा चल नहीं पाता था । दोनों को मेला देखने जाना था । लंगड़ा अंधे के कंधे पर सवार हो गया था। आजकल कुछ समझदार पापी स्वामियों के कंधों पर सवार हो कर मुक्ति के मेले तक पहुँचना चाहते हैं। अब तो गोरी-चिट्टी महिलाएँ भी योग के मैदान में उतर कर कमाल कर रही हैं। बिकनीनुमा वस्त्रों में योगा सिखा रही हैं। वाह-वाह, इस योगा में कितनी संभावनाएँ हैं। तन, मन और धन। सबका आनंद है यहाँ। आय-हाय..। योगियों की बजाय योगिनियाँ ज्यादा आकर्षित करती हैं। योगा में ग्लैमर बढ़ रहा है इसीलिए तो नए दौर में इस सर्वाधिक हिट-सुपर-डूपर हिट- सांग को गाएँ और फौरन से पेश्तर 'योगम् शरणम् गच्छामि' हो जाएं ताकि 'भोगम शरणम गच्छामि' के लिये सुविधा में कोई दुविधा न रहे.  बोलो योगादेव की... जय।