22 मई 2012

भेडिये के कार्टून..


भेडिये के कार्टून..
गिरीश पंकज 
कुछ नेता नहा-धो कर कार्टूनिस्टों के पीछे पड़ गए थे. वे बेचारे कार्टून बनाना चाहते हैं. यह उनकी आदत है मगर  नेता चाहते हैं, कार्टून न बनाए जाएँ. कार्टूनिस्टों पर हमले हो रहे है. जान  का ख़तरा हो गया है. तो करें क्या? एक दिन सारे कार्टूनिस्ट मिले और विचार करने लगे.
एक कार्टूनिस्ट ने कहा, ''अब तो एक ही रास्ता है. कार्टून बनाना ही बंद  कर दिया जाये.''
''ऐसे में तो हमारा जीना कठिन हो जाएगा. कार्टून बनाना हमारा धर्म है. जहा विसंगति नज़र आयेगी, हमारी तूलिका चलेगी.'' एक कार्टूनिस्ट उत्तेजित हो कर बोला. उसको शांत करते हुए दूसरे कार्टूनिस्ट ने समझाया, ''देखो प्यारेलाल,  जान है तो जहान है. कुछ दिन शांत रहो. लोग शांत हो जाएँ उसके बाद फिर शुरू हो जाना.'' 
''लेकिन हम तो बिना कार्टून बनाए रह नहीं सकते.'' एक कार्टूनिस्ट ने कहा, तो सब सोचने लगे, 'बात ठीक है. कुछ तो रास्ता निकले. सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे'.
अचानक एक सीनियर कार्टूनिस्ट  ''यूरेका-यूरेका'' कहते हुए खुशी से नाचने लगा. सब खुश हो गए कि कोई धाँसू आइडिया सूझा है. सीनियर कार्टूनिस्ट ने कहा, ''भाइयों, एक रास्ता है,. उस पर चल कर हम अपना अभियान जारी रख सकते है. बस हमें नेताओं की जगह जानवरों के चित्रों का इस्तेमाल करना होगा.''
लोग सीनियर कार्टूनिस्ट की बात को समझे नहीं पाए, तो कार्टूनिस्ट ने सबको विस्तार से समझाया. बस उस दिन से कार्टूनिस्ट निश्चित हो कर अपने  काम पर लग गए. अब कोई कार्टूनिस्ट किसी नेता का कार्टून नहीं बनाता.  व्यंग्यचित्रकार जंगल की ओर या कहें कि पशुओं की ओर मुड़ गए थे. यानी उनके कार्टूनों में अब 'भेडिये', 'लोमड़ी', 'गीदड़', 'गधे', 'सूअर', 'कुत्ते' आदि नज़र आने लगे.  वे निश्चिन्त थे..  जानवरों पर बने कार्टून देख कर किसी नेता को बुरा नहीं लग रहा था.. लेकिन  पशुओं में हलचल थी कि हम पर कार्टून बना कर मनुष्य हमारा अपमान कर रहा है. हमें नेताओं जैसा समझ रहा है. यह ठीक नहीं. पशुओं के नेता ने कहा, ''भाई, कलजुग है. यह सब हमें झेलना ही पडेगा.'' सारे पशु चुप  हो गए. लेकिन नेताओं के चमचे चुप नहीं थे. वे समझ गए कि कार्टूनिस्टों ने प्रहार करने का नया तरीका निकाला है.
कान भरने की कला में माहिर  एक चमचे ने एक नेता के पास एक कार्टून पेश करते हुए कहा, ''देख रहे हो भैयाजी इन सालों की हरकते? आप पर कार्टून बना रहे हैं. कहो तो कर दें काम तमाम?''
भैयाजी ने कार्टून को देखा और हँसते हुए  कहा, तुम भी पूरे बुडवक हो. ये तो किसी भेडिये पर कार्टून है, मुझ पर नहीं.''
 चमचा बोला, ''भेडिये की आड़ ले कर आप पर कार्टून बनाया गया है. आप कुछ तो समझो.''
भैया जी ने कार्टून को बड़े गौर से देखा. उन्हें कुछ समझ में नहीं आया. वे बोले, यार यूं पढ़े-लिखे लोगों के साथ यही दिक्कत है. इसीलिये हम ज्यादा नहीं पढ़े. ज्यादा पढ़ों तो दिमाग तेजी से चलने लगता है. हर चीज़ में खोट नज़र आता है. भेडिये -लोमड़ी पर कार्टून है और तुमको लग रहा है, मुझ पर व्यंग्य किया है.''
चमचा निराश हो गया कि भैयाजी उसकी बात नहीं समझ रहे है तो उसने कुछ खुल कर कहने की कोशिश की, ''देखिये आप सुर-सुन्दरी के प्रेमी है. रात आपकी रंगीन रहती है. कार्टूनिस्ट ने भेडिये को कुर्सी पर बिठा कर यही तो बताया है.''
इतना सुनाना था कि भैया जी भड़क उठे. ''अच्छा, उस ससुरे कार्टूनिस्ट की इतनी हिम्मत? फ़ौरन उसे निबटा दिया जाये लेकिन संभल कर आजकल लोग बड़े जागरूक हो गए है. मैं लपेटे में न ले लिया जाऊं सावधान रहना. अभी बहुत ऐश करना है. बोले तो देश की सेवा करनी है.''
 चमचा बोला, ''फिकर नाट  हम हूँ न...''
भैया जी आश्वस्त हो कर मोबाईल में रखी कोई  नीली फिल्म देखकर अपना ज्ञान बढ़ाने में व्यस्त हो गए. चमचा अपने 'काम' पर लग गया.

3 टिप्‍पणियां:

  1. अभी एक फोन आया था। पूछ रहा था कि यह गिरीश पंकज कौन है? कार्टूनिस्ट की आड़ ले कर नेताओं को बदनाम कर रहा है। ...संभल जाइये सर जी।:)

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  2. बहुत सही व् सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार हम हिंदी चिट्ठाकार हैं

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