दूसरे को गाली दे दो, फिर कहो - 'यह ऑफ दि रिकार्ड है।'
नेताओं का तकिया कलाम है - 'ऑफ दि रिकार्ड'। मन की भड़ास निकाल कर उस पर 'ऑफ दि रिकार्ड' चस्पा कर दो।एक नेताजी पत्रकारों से गुफ्तगू कर रहे थे। जब भी मौका लगता है, पत्रकारों के बीच चले आते हैं : जैसे प्यासा कुएँ के पास। प्रचार की खुराक से नेता का जीवन चलता है। प्रचार न मिले तो मर जाए, बेचारा। तो, नेताजी पत्रकारों से चर्चा कर रहे थे। देश की, समाज की, कल की, आज की। फिर धीरे से हीरोइन की कमर पर अपना ज्ञान बघारने लगे। सहसा उन्हें ध्यान आया कि वह पत्रकारों के बीच हैं, अपने खास चमचों के बीच नहीं, तो घबराए और बोले - ''बंधुवर, ये ऑफ दि रिकार्ड है, ध्यान रहे।''
भ्रष्टाचार पर नेताजी बोलने लगे - ''देश का पतन हो रहा है साहब! देश में मैं भी रहता हूँ। मेरा भी पतन हो सकता है। फिलहाल तो बचा हुआ हूँ। लेकिन वो नेता है न, लतखोरीलाल। नंबर एक का भ्रष्टाचारी है। उसका पूरा खानदान भ्रष्टाचारी है। अपनी पार्टी का नेता है लेकिन हरकतें विरोधियों जैसी करता है। मेरी चले तो दो मिनट में पार्टी से हकाल बाहर करूँ। बहुत भ्रष्ट है। न खुद खाता है, न दूसरों को खाने देता है। ऐसे लोग राजनीति में रहेंगे तो हमारा क्या होगा? और बता दूँ,कि उसकी पत्नी भी भ्रष्टाचारी है।''
नेताजी इतना बोलकर रुके, फिर धीरे से बोले - ''अरे भई, अभी जितना कुछ बोला है, उसे 'ऑफ दि रिकार्ड' समझना, वरना मेरी तो फजीहत हो जाएगी। ससुरी ये जुबान जब देखो बकर-बकर करती रहती है। चमड़े की है न। उचकती रहती है। मेहरबानी करना जी। ये सब छप न पाए।''
पत्रकारों ने छुटभैये नेता को पहले भी कोई भाव नहीं दिया था। अब भी नहीं दे रहे थे लेकिन बेचारे 'बकरवादी' होने के कारण घबरा-से गए थे कि अगर मेरा बयान छप-छुपा गया तो लोग दौड़ा-दौड़ा कर पीटेंगे। अधिकांश पत्रकार भी नैतिकता में बंधे रहते हैं। (वैसे कुछ के लिए नैतिकता-फैतिकता का कोई अर्थ नहीं होता) किसी ने कह दिया 'ऑफ दि रिकार्ड' तो फिर 'ऑफ दि रिकार्ड'। फिर वह 'ऑन दि रिकार्ड' नहीं होता। और बहुत सारे नेता इसी 'ऑफ दि रिकार्ड' की आड़ में जी-भर कर अपनी कुंठा, भड़ास आदि-आदि निकाल लेते हैं। एक तरह से वे अपने चेहरा पत्रकारों के सामने खोलकर रख देते हैं और वक्त जरूरत पर उसकी मरम्मत करता है। 'ऑफ दि रिकार्ड' नहीं, 'ऑन दि रिकार्ड'।
हम लोगों की ज़िदगी का अधिकांश हिस्सा 'ऑफ दि रिकार्ड' होता है। 'ऑन दि रिकार्ड' जो कुछ होता है। वह काफी चिकना-चुपड़ा होता है। यूँ समझ लो कि 'बाथरूम आदि' ऑफ दि रिकार्ड है और ड्राइंग रूम 'ऑन दि रिकार्ड' बड़े से बड़ा तोपचंद 'ऑफ दि रिकार्ड' होता है और 'ऑन दि रिकार्ड' भी होता है।
एक सज्जन बोले - ''मेरा जीवन तो एक खुली किताब है।''
जब लोगों ने किताब को पलटाया तो पता चला सारे पन्ने पाखंडरूपी दीमक चाट गए हैं।
हमने पूछा - ''श्रीमान, आपकी खुली किताब के सारे पन्ने तो दीमक-ग्रस्त हैं'', तो वह चट् से मुसकरा पड़े और बोले- ''ये 'ऑफ दि रिकार्ड' मामला है।''
अब अपनी भी एक बात आपके सामने खोल ही दूँ। दरअसल मैं क्यों व्यंग्य लिखने बैठा था। यह 'ऑफ दि रिकार्ड'बात है, जबकि 'ऑफ दि रिकार्ड' यह है कि व्यंग्य आखिरी-आखिरी में आकाशवाणी-मार्का चिंतन में बदल गया। समझदार पाठक समझ सकते हैं बदले हुए ट्रैक को।
अनेक सज्जनों की बुराइयाँ 'ऑफ दि रिकार्ड' रह जाती हैं तो तथाकथित बुरे लोगों की अच्छाइयाँ भी 'ऑफ दि रिकार्ड'नहीं आ पाती। यह जीवन इसी तरह चलता रहता है।
वे लोग जीवन में सुखी रहते हैं जो दूसरों के फटे में पैर नहीं डालते। मतलब उनके 'ऑफ दि रिकार्ड' को 'ऑन दि रिकार्ड' करने की कोशिश नहीं करते। जब-जब कोई 'महापुरुष' ऐसी हरकत करता है, दूसरा महापुरुष भी उनके जीवन के 'ऑफ दि रिकार्ड' ढूँढने लगता है। कुछ लोग हर समय एक-दूसरे के 'ऑफ दि रिकार्ड' की खोज में लगे रहते हैं। ऐसे ही लोगों के लिए 'छिद्रान्वेषी' जैसे शब्द का जन्म हुआ है। आजकल मीडिया में इस तरह के खोजी बढ़ते जा रहे हैं।
पिछले दिनों एक अखबार ने कमाल कर दिया। विधानसभा में एक विधायक ने दूसरे विधायक के प्रति अपशब्द कह दिए। सदन ने उन शब्दों को विलोपित कर दिया, लेकिन रिपोर्टर बेचारा अति उत्साहित था। उसने अपने अखबार में उन शब्दों को भी प्रकाशित कर दिया। विधानसभा अध्यक्ष बेचार सिर पीटने लगे।
उन्होंने अखबार के संपादक से कहा, ''अपने पत्रकारों को कुछ सिखाइए। सदन में जो बात ऑफ दि रिकार्ड होती है, उसे छापा नहीं करते।''
इस पर संपादक जी भड़क गए- ''वाह, क्यों नहीं छाप सकते? आखिर विधायक ने गाली दी थी कि नहीं?''
''अरे, दी तो थी मगर उन शब्दों को विलोपित कर दिया गया था। ऐसे शब्दों को प्रकाशित नहीं किया जा सकता। यह आचार संहिता के विरुद्ध है।''
एक सज्जन बोले - ''मेरा जीवन तो एक खुली किताब है।''
जब लोगों ने किताब को पलटाया तो पता चला सारे पन्ने पाखंडरूपी दीमक चाट गए हैं।
हमने पूछा - ''श्रीमान, आपकी खुली किताब के सारे पन्ने तो दीमक-ग्रस्त हैं'', तो वह चट् से मुसकरा पड़े और बोले- ''ये 'ऑफ दि रिकार्ड' मामला है।''
अब अपनी भी एक बात आपके सामने खोल ही दूँ। दरअसल मैं क्यों व्यंग्य लिखने बैठा था। यह 'ऑफ दि रिकार्ड'बात है, जबकि 'ऑफ दि रिकार्ड' यह है कि व्यंग्य आखिरी-आखिरी में आकाशवाणी-मार्का चिंतन में बदल गया। समझदार पाठक समझ सकते हैं बदले हुए ट्रैक को।
अनेक सज्जनों की बुराइयाँ 'ऑफ दि रिकार्ड' रह जाती हैं तो तथाकथित बुरे लोगों की अच्छाइयाँ भी 'ऑफ दि रिकार्ड'नहीं आ पाती। यह जीवन इसी तरह चलता रहता है।
वे लोग जीवन में सुखी रहते हैं जो दूसरों के फटे में पैर नहीं डालते। मतलब उनके 'ऑफ दि रिकार्ड' को 'ऑन दि रिकार्ड' करने की कोशिश नहीं करते। जब-जब कोई 'महापुरुष' ऐसी हरकत करता है, दूसरा महापुरुष भी उनके जीवन के 'ऑफ दि रिकार्ड' ढूँढने लगता है। कुछ लोग हर समय एक-दूसरे के 'ऑफ दि रिकार्ड' की खोज में लगे रहते हैं। ऐसे ही लोगों के लिए 'छिद्रान्वेषी' जैसे शब्द का जन्म हुआ है। आजकल मीडिया में इस तरह के खोजी बढ़ते जा रहे हैं।
पिछले दिनों एक अखबार ने कमाल कर दिया। विधानसभा में एक विधायक ने दूसरे विधायक के प्रति अपशब्द कह दिए। सदन ने उन शब्दों को विलोपित कर दिया, लेकिन रिपोर्टर बेचारा अति उत्साहित था। उसने अपने अखबार में उन शब्दों को भी प्रकाशित कर दिया। विधानसभा अध्यक्ष बेचार सिर पीटने लगे।
उन्होंने अखबार के संपादक से कहा, ''अपने पत्रकारों को कुछ सिखाइए। सदन में जो बात ऑफ दि रिकार्ड होती है, उसे छापा नहीं करते।''
इस पर संपादक जी भड़क गए- ''वाह, क्यों नहीं छाप सकते? आखिर विधायक ने गाली दी थी कि नहीं?''
''अरे, दी तो थी मगर उन शब्दों को विलोपित कर दिया गया था। ऐसे शब्दों को प्रकाशित नहीं किया जा सकता। यह आचार संहिता के विरुद्ध है।''
''लेकिन हम विलोपित नहीं कर सकते। हम प्रजातंत्र के चौथे खंभे हैं। गणेशशंकर विद्यार्थी की परम्परा वाले हैं। हम तो भाई, जो घटा है, वही लिखते हैं। माफ करें।''
विधानसभा अध्यक्ष महोदय अब क्या करते। उन्होंने खिसयानी बिल्ली की तरह अपने बालों को ही नोंचना शुरू कर दिया। और बोले, ''ठीक है प्रभु, जैसी आपकी मरजी।''
तो ऑफ दि रिकार्ड बड़ा रोचक शब्द है। इसका भी अपना रिकार्ड होता है। मीडिया वाले ऐसे ही नेताओं को खोज-खोज कर उनकी 'बाइट' लेते हैं, जो 'ऑफ दि रिकार्ड' बोल कर भी चाहते हैं, जग जाहिर कर दो। इसी बहाने में चर्चा में तो बने रहेंगे।
विधानसभा अध्यक्ष महोदय अब क्या करते। उन्होंने खिसयानी बिल्ली की तरह अपने बालों को ही नोंचना शुरू कर दिया। और बोले, ''ठीक है प्रभु, जैसी आपकी मरजी।''
तो ऑफ दि रिकार्ड बड़ा रोचक शब्द है। इसका भी अपना रिकार्ड होता है। मीडिया वाले ऐसे ही नेताओं को खोज-खोज कर उनकी 'बाइट' लेते हैं, जो 'ऑफ दि रिकार्ड' बोल कर भी चाहते हैं, जग जाहिर कर दो। इसी बहाने में चर्चा में तो बने रहेंगे।
जबरदस्त पोस्ट, आन द रेकार्ड.
जवाब देंहटाएंपोस्ट पढ़कर मज़ा आया , राजनेता अपने सभी कारनामे ऑफ़ दि रिकार्ड रखते हैं , भाषणबाज़ी ऑन दि रिकार्ड |
जवाब देंहटाएंजबरदस्त पोस्ट|
जवाब देंहटाएंहोली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ|
कृपया इसे रिकॉर्ड किया जाये यह रचना जबरदस्त हैऑफ थे रिकॉर्ड तो नेताओं के अकाउंट होते है बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंगुरदास मान के गाए अधिकतर गीत उन्होंने खुद ही लिखे हैं। यह गीत यदि किसी अन्य ने लिखा हो तो उसकी जानकारी नहीं है।
जवाब देंहटाएंअधिकांश पत्रकार भी नैतिकता में बंधे रहते हैं। (वैसे कुछ के लिए नैतिकता-फैतिकता का कोई अर्थ नहीं होता)वाह गिरीश जी क्या खूब शब्दों में लपेट-लपेट कर मारा है....
जवाब देंहटाएंएक सज्जन बोले - ''मेरा जीवन तो एक खुली किताब है।''
जवाब देंहटाएंजब लोगों ने किताब को पलटाया तो पता चला सारे पन्ने पाखंडरूपी दीमक चाट गए हैं।
हमने पूछा - ''श्रीमान, आपकी खुली किताब के सारे पन्ने तो दीमक-ग्रस्त हैं'', तो वह चट् से मुसकरा पड़े और बोले- ''ये 'ऑफ दि रिकार्ड' मामला है।''hahaha
Aidiya bura nahi hai.
जवाब देंहटाएं............
तीन भूत और चार चुड़ैलें।!
14 सप्ताह का हो गया ब्लॉग समीक्षा कॉलम।
बहुत ही बढ़िया व्यंग
जवाब देंहटाएंकिसी को गाली देने को जरुरत ही नहीं उस उसे "नेता" कह दिया एक पूरी गाली हो गयी. ये हाल है आज के नेताओं के ...
ek shaandar aalekh
जवाब देंहटाएंbadhai swikare
बहुत सुन्दर और शानदार आलेख! बधाई!
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लोगों पर आपका स्वागत है!
जबरदस्त पोस्ट
जवाब देंहटाएंनेताओं के मुह पर ये आपका बहुत ही करार तमाचा है पंकज जी...बहुत ही अच्छा और सटीक व्यंग्य है, बस ये मैटर अगर ब्लैक कलर में होता तो आँखों के लिए अधिक सुविधाजनक होता....
जवाब देंहटाएंvah sir bahut sundar abhar
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