हम न जइबू विमोचन समारोह देखन बाबा !गिरीश पंकज
हमारा मित्र पिछले दिनों एक पुस्तक के लोकार्पण में गया और उसने कसम खा ली कि ''हम न जइबू विमोचन समारोह देखन बाबा, माँ क़सम ! ''
मैंने पूछा, ''ऐसा क्या हो गया भाई? और सीधे माँ कसम?''
मित्र बोला, ''हां, माँ कसम, खाओ तो ढंग की कसम खाओ. वैसे अब झूठी कसम ही सही, लेकिन खा लेता हूँ कि अब से किसी विमोचन समारोह में नहीं जाऊँगा। क्योंकि जाने से तो बाते होंगी। एक तो विमोचनकर्ता की झूठी तारीफों को झेलना होगा, या फिर कान बंद करना पड़ेगा। कान बंद कर के बैठना ठीक नहीं होगा, लोग कहेंगे ई बदतमीज़ी है. इसलिए जाना ही ठीक नहीं।''
मैंने पूछा, ''आखिर ऐसी क्या बात हो गयी भाई, कुछ खोल कर कहो.''
मित्र बोला, ''न जाने का तरल नहीं, ठोस कारण हैं. ई ससुरे खा-पी कर अघाये घाघ किस्म के पुराने लेखक-आलोचक जहां जाते हैं, वहां झूठ का पिटारा खोल कर नए लेखक को एकदम से आकाश में चढ़ा देते है. लेखक तो हवाई जहाज से आता है, महंगी शराब पीता है और दूसरे दिन निकल लेता है कल्टी मार के, मगर नया बुड़बक लेखक बेचारा दो-चार रात ठीक से सो नहीं पाता क्योंकि वरिष्ठ आलोचक उसे साहित्य का नया अवतार बता देता है, आलोचक की भाषा इतनी मनमोहक और जानलेवा रहती है कि नया लेखक पगलेट-सा घूमता रहता है और एक दिन..... उसके लेखक का 'द ऐंड ' हो जाता है.पग्गल न हो तो का करे बेचारा। उस नए लेखक के लिए ऐसी -ऐसी तारीफ करता है घाघ आलोचक कि अभी-अभी पैदा हुआ लेखक फूल कर गुब्बारा हुई जाता है. घाघ आलोचक बोलता है, इस नए लेखक ने कमाल कर दिया है। साहित्य सो रहा था, उसको इस नए लेखक ने जगाया है, मतबल यह कि साहित्य के पुनर्जागरण का श्रेय अगर किसी को जाता है तो इसी साहित्यिक पट्ठे को जाता है। ये न होता तो साहित्य अजगर की तरह सोया रहता और पता नहीं, कब तक सोया पड़ा रहता. इस युवा लेखक ने साहित्य को जगाया है. इसके कारण मैं भी जाग गया हूँ. अब तक मुझे लगता था की साहित्य का सबसे बड़ा रचनाकार महीच्च हूँ मगर इसकी पुस्तक पढ़ने के बाद लगा कि मैं तो इसके पासंग में भी नहीं हूँ। मैं नंबर वन लेखक था, लेकिन अब से मैं 'दो नंबरी' लेखक हो गया हूँ, क्योंकि ये युवा लेखक नंबर वन पर आ गया है. इसके मुकाबले इस इलाके में अभी कोई लेखक मुझे तो नज़र नहीं आता.''मित्र की बात सुन कर मैंने कहा, ''ठीक कह रहे हो पार्टनर. आलोचक की बात सुन कर नया लेखक धरती की और से निहार रहा होगा और घबरा भी रहा होगा कि कहीं यह धरती फट न जाए. अगर फट गयी तो सीधे अंदर सामना ही पड़ेगा।''
मित्र बोला, ''ठीक कह रहे हो. विमोचन समारोह में साहित्य नए-पुराने लोग आलोचक को सुन रहे थे और मज़ा भी ले रहे थे कि देखो, कैसे तारीफों के पुल बाँध कर नए लेखक की अकाल मौत का रास्ता तैयार कर रहा है।''मैंने कहा, ''यार, आजकल ऐसे तरीफबाज़ लेखको की साहित्य में बड़ी डिमांड है. हर कोई इनको बुलाता है. क्योंकि अगला जी खोल कर तारीफ भी तो करता है. तारीफ करना बुरी बात भी नहीं, एक युवा लेखक बेचारा अमर होने के लिए वरिष्ठ लेखक की हवाई यात्रा का प्रबंध करता है. उसे सितारा होटल में रुकवाता है, उसकी हर ख्वाहिश पूरी करता है, गिफ्ट-शिफ्ट भी देता है. बदले में वरिष्ठ लेखक क्या युवा लेखक को प्रेमचंद, निराला, मुक्तिबोध आदि के बरोबर भी खड़ा नकारे तो यह सेवाहरामी (बतर्ज़ नमकहरामी) होगी। लोगो को बुरा लगता है तो लगता रहे उनकी बला से. जीवन के इतने साल यही सब तो करते हुए काट दिए, कुछ साल और बचे हैं, वे भी कट जायेंगे।''
हमारा मित्र पिछले दिनों एक पुस्तक के लोकार्पण में गया और उसने कसम खा ली कि ''हम न जइबू विमोचन समारोह देखन बाबा, माँ क़सम ! ''
मैंने पूछा, ''ऐसा क्या हो गया भाई? और सीधे माँ कसम?''
मित्र बोला, ''हां, माँ कसम, खाओ तो ढंग की कसम खाओ. वैसे अब झूठी कसम ही सही, लेकिन खा लेता हूँ कि अब से किसी विमोचन समारोह में नहीं जाऊँगा। क्योंकि जाने से तो बाते होंगी। एक तो विमोचनकर्ता की झूठी तारीफों को झेलना होगा, या फिर कान बंद करना पड़ेगा। कान बंद कर के बैठना ठीक नहीं होगा, लोग कहेंगे ई बदतमीज़ी है. इसलिए जाना ही ठीक नहीं।''
मैंने पूछा, ''आखिर ऐसी क्या बात हो गयी भाई, कुछ खोल कर कहो.''
मित्र बोला, ''न जाने का तरल नहीं, ठोस कारण हैं. ई ससुरे खा-पी कर अघाये घाघ किस्म के पुराने लेखक-आलोचक जहां जाते हैं, वहां झूठ का पिटारा खोल कर नए लेखक को एकदम से आकाश में चढ़ा देते है. लेखक तो हवाई जहाज से आता है, महंगी शराब पीता है और दूसरे दिन निकल लेता है कल्टी मार के, मगर नया बुड़बक लेखक बेचारा दो-चार रात ठीक से सो नहीं पाता क्योंकि वरिष्ठ आलोचक उसे साहित्य का नया अवतार बता देता है, आलोचक की भाषा इतनी मनमोहक और जानलेवा रहती है कि नया लेखक पगलेट-सा घूमता रहता है और एक दिन..... उसके लेखक का 'द ऐंड ' हो जाता है.पग्गल न हो तो का करे बेचारा। उस नए लेखक के लिए ऐसी -ऐसी तारीफ करता है घाघ आलोचक कि अभी-अभी पैदा हुआ लेखक फूल कर गुब्बारा हुई जाता है. घाघ आलोचक बोलता है, इस नए लेखक ने कमाल कर दिया है। साहित्य सो रहा था, उसको इस नए लेखक ने जगाया है, मतबल यह कि साहित्य के पुनर्जागरण का श्रेय अगर किसी को जाता है तो इसी साहित्यिक पट्ठे को जाता है। ये न होता तो साहित्य अजगर की तरह सोया रहता और पता नहीं, कब तक सोया पड़ा रहता. इस युवा लेखक ने साहित्य को जगाया है. इसके कारण मैं भी जाग गया हूँ. अब तक मुझे लगता था की साहित्य का सबसे बड़ा रचनाकार महीच्च हूँ मगर इसकी पुस्तक पढ़ने के बाद लगा कि मैं तो इसके पासंग में भी नहीं हूँ। मैं नंबर वन लेखक था, लेकिन अब से मैं 'दो नंबरी' लेखक हो गया हूँ, क्योंकि ये युवा लेखक नंबर वन पर आ गया है. इसके मुकाबले इस इलाके में अभी कोई लेखक मुझे तो नज़र नहीं आता.''मित्र की बात सुन कर मैंने कहा, ''ठीक कह रहे हो पार्टनर. आलोचक की बात सुन कर नया लेखक धरती की और से निहार रहा होगा और घबरा भी रहा होगा कि कहीं यह धरती फट न जाए. अगर फट गयी तो सीधे अंदर सामना ही पड़ेगा।''
मित्र बोला, ''ठीक कह रहे हो. विमोचन समारोह में साहित्य नए-पुराने लोग आलोचक को सुन रहे थे और मज़ा भी ले रहे थे कि देखो, कैसे तारीफों के पुल बाँध कर नए लेखक की अकाल मौत का रास्ता तैयार कर रहा है।''मैंने कहा, ''यार, आजकल ऐसे तरीफबाज़ लेखको की साहित्य में बड़ी डिमांड है. हर कोई इनको बुलाता है. क्योंकि अगला जी खोल कर तारीफ भी तो करता है. तारीफ करना बुरी बात भी नहीं, एक युवा लेखक बेचारा अमर होने के लिए वरिष्ठ लेखक की हवाई यात्रा का प्रबंध करता है. उसे सितारा होटल में रुकवाता है, उसकी हर ख्वाहिश पूरी करता है, गिफ्ट-शिफ्ट भी देता है. बदले में वरिष्ठ लेखक क्या युवा लेखक को प्रेमचंद, निराला, मुक्तिबोध आदि के बरोबर भी खड़ा नकारे तो यह सेवाहरामी (बतर्ज़ नमकहरामी) होगी। लोगो को बुरा लगता है तो लगता रहे उनकी बला से. जीवन के इतने साल यही सब तो करते हुए काट दिए, कुछ साल और बचे हैं, वे भी कट जायेंगे।''
मित्र बोला, ''कुछ आलोचक बड़ी ऊंची रकम होते हैं।
झुमरी तलैया के लेखक दुखीराम 'सुखी' की पुस्तक के विमोचन में जब गया था,
तो उसे भी यही आलोचक मुक्तिबोध और नागार्जुन की टक्कर का कवि बता रहा था.
वहाँ भी ये कह रहा था कि 'दुखीराम 'सुखी' ने हिन्दी साहित्य को जाग्रत
करने का काम किया ह। यह युवा कवि मेरे से दस हाथ आगे है. इस इलाके का गौरव है कि इस युवा कवि ने यहां जन्म लिया। धरा
धन्य हो गई''.. उस आयोजन के बाद हालत यह हुयी कि युवा कवि 'दुखीराम' की
कोई नयी कविता आज तक कहीं नहीं छपी, उसने लिखी ही नहीं। जब एक बड़ा आलोचक
बोल रहा है कि यह मुक्तिबोध और नागार्जुन के टक्कर की कवितायेँ लिख रहा है
तो और अधिक लिखना ही क्यों ? जितना लिख लिया, पर्याप्त है. उसे ही
भुनाएँगे। तो, आलोचक नए लेखकों को चने के पेड़ में चढ़ा कर ऐसा गिराता है कि
बेचारा दुबारा खड़ा हीं नहीं हो पाता.''
मित्र की बात सुन कर मैं चुप हो
गया, मित्र मुस्का रहा था, फिर बोला, ''यही कारण है कि मैं अब किसी भी
विमोचन समारोह में नहीं जाऊँगा, एक तो मुख्य अतिथि द्वारा नए लेखक की झूठी
प्रशंसा सुनो, और बाद में नए कवि को अकाल मौत मरते देखो। एक और त्रासदी
होती है. विमोचन समारोह के बाद युवा कवि घर-बाहर किसी से भी सीधे मुंह बात
ही नहीं करता, उसे नमस्ते करो तो गंभीर चेहरा बना कर मुंडी हिला देता है,
बस.''
मित्र की बात सुन कर मैं मौनी बाबा बन कर मुंडी हिलाते रह गया.
बढ़िया ब्यंग.... हम न जइबू विमोचन समारोह देखन बाबा
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