नोटबंदी में फँस गए सांताक्लॉज
नोटबंदी के कारण 'टेंशनाए' लोगों ने जब सांताक्लॉज को देखा तो लपक पड़े उसकी ओर.
सब यही सोच रहे थे कि उपहारों की गठरी में नोट-ही-नोट होंगे। नोटबंदी के मारे लोग रात को भी नोट -नोट सपना रहे थे. भीड़ ने सांताक्लॉज को घेर लिया। लोग ''मुझे...मुझे'' करने लगे. धक्का -मुक्की, मारपीट की नौबत आ गयी। सांताक्लॉज के कपड़े फट गए. वे घबरा गए। भाग भी नही सकते थे. पिछले उच्च दिनों से बैंको और एटीएमों के बाहर लंबी-लंबी लाइने देख कर सांताक्लॉज को पहले लगा, मेरी ही तरह सांताक्लॉज होगा कोई, जो उपहार बाँटने आया है। लेकिन बाद में पता चला सब अपने पुराने नोट बदलवाने के लिए लाइन में लगे हैं या फिर नए नोट पाने के लिए। सांताक्लॉज ने कहा ''भाइयो और बहनो, मेरे पास नोटबंदी का कोई समाधान नही है। मेरी गठरी में जो है, वही दे सकूंगा।'' एक ने कहा, ''ठीक है, जो है दे दो.'' उसके बाद तो फरमाइशों की लाइन लग गई. किसी को मंहगी कार की मांग की तो किसी को आलीशान बंगला चाहिए था. किसी को विदेश यात्रा, किसी को फ़ार्म हाउस तो किसी को सबसे मंहगा मोबाइल-लैपटाप चाहिए था। सांताक्लाज मुस्काए-''भाई, तुम लोग बेहद असंतुष्ट हो, परेशान जीव हो चुके हो। लो, तुम्हारे लिए इस बार कुछ अच्छे चीज़े लाया हूँ। इसे ले जाओ और जीवन भर सुख से रहो।'' किसी ने कहा, ''मतलब अच्छा-खास बैंक बैलेंस लाए है क्या?'' दूसरा भी सेवानिवृत्त अफसर था. मुफ्तखोरी की खानदानी आदत लगी थी। वह चिल्लाया - ''सैंटा, नए साल का जश्न मनाने विदेश जाने का मूड है.हवाई टिकट दे दो। अब कोई साला घास ही नहीं डालता।'' एक नेता ने कहा, ''सरकार की नोटबन्दी के कारण घर में दबा कर रखे गए हजार-पांच सौ के नोट बेकार हो रहे हैं. इनको दो हजार के गुलाबी नोटों में बदल दो।'' सांताक्लॉज हंस पड़े - ''वे बोले, ''मैं जादूगर नहीं हूँ भाई,सांताक्लॉज हूँ.अडानी-अम्बानी टाइप का अरब-खरबपति सेठ भी नहीं हूँ, जिसके घर जाकर बैंकवाले नए नोट थमा कर आ जाते हैं.. नोटबंदी के कारण मैं भी कुछ ठीक से खरीद नहीं पाया. मेरे खाते में बहुत धन भी नहीं था कि 'कैशलेस' खरीदी करता। मैं तो कुछ और उपहार ले कर चलता हूँ सस्ता-सुंदर और टिकाऊ.चहिये तो बोलो वरना मैं तो चला.'' उपहार सुन कर माळेमुफ्त के रोग से ग्रस्त कुछ लोग चीख पड़े , ''तो जल्दी निकालो, न नए साल का गिफ्ट। फोकट का चंदन भी होगा तो हम घिस लेंगे। सांताक्लॉज बोले - ''न मेरे पास चंदन है, न काजल है। मेरे पास जो है वो दे रहा हूँ. ये लो 'परमसंतोष', .... पकड़ो 'शांति', ये लो 'सद्भावना', ये रहा जीवन का परम 'आनंद।'' सांताक्लाज ने गठरी खोल दी। सांताक्लॉज के उपहारों से कुछ लोग भयंकर निराश हुए, मगर कुछ समझदार लोग प्रसन्न हो कर अपनी राह चल पड़े। 'थैंक्स गॉड' कहते हुए सांताक्लॉज भी लौट गए लेकिन वे सोचते हुए जा रहे थे कि अब दुबारा इस तरफ आना खतरे से खाली नही है. जान बची और लाखो पाए, लौट के सैंटा घर को आए.
नोटबंदी के कारण 'टेंशनाए' लोगों ने जब सांताक्लॉज को देखा तो लपक पड़े उसकी ओर.
सब यही सोच रहे थे कि उपहारों की गठरी में नोट-ही-नोट होंगे। नोटबंदी के मारे लोग रात को भी नोट -नोट सपना रहे थे. भीड़ ने सांताक्लॉज को घेर लिया। लोग ''मुझे...मुझे'' करने लगे. धक्का -मुक्की, मारपीट की नौबत आ गयी। सांताक्लॉज के कपड़े फट गए. वे घबरा गए। भाग भी नही सकते थे. पिछले उच्च दिनों से बैंको और एटीएमों के बाहर लंबी-लंबी लाइने देख कर सांताक्लॉज को पहले लगा, मेरी ही तरह सांताक्लॉज होगा कोई, जो उपहार बाँटने आया है। लेकिन बाद में पता चला सब अपने पुराने नोट बदलवाने के लिए लाइन में लगे हैं या फिर नए नोट पाने के लिए। सांताक्लॉज ने कहा ''भाइयो और बहनो, मेरे पास नोटबंदी का कोई समाधान नही है। मेरी गठरी में जो है, वही दे सकूंगा।'' एक ने कहा, ''ठीक है, जो है दे दो.'' उसके बाद तो फरमाइशों की लाइन लग गई. किसी को मंहगी कार की मांग की तो किसी को आलीशान बंगला चाहिए था. किसी को विदेश यात्रा, किसी को फ़ार्म हाउस तो किसी को सबसे मंहगा मोबाइल-लैपटाप चाहिए था। सांताक्लाज मुस्काए-''भाई, तुम लोग बेहद असंतुष्ट हो, परेशान जीव हो चुके हो। लो, तुम्हारे लिए इस बार कुछ अच्छे चीज़े लाया हूँ। इसे ले जाओ और जीवन भर सुख से रहो।'' किसी ने कहा, ''मतलब अच्छा-खास बैंक बैलेंस लाए है क्या?'' दूसरा भी सेवानिवृत्त अफसर था. मुफ्तखोरी की खानदानी आदत लगी थी। वह चिल्लाया - ''सैंटा, नए साल का जश्न मनाने विदेश जाने का मूड है.हवाई टिकट दे दो। अब कोई साला घास ही नहीं डालता।'' एक नेता ने कहा, ''सरकार की नोटबन्दी के कारण घर में दबा कर रखे गए हजार-पांच सौ के नोट बेकार हो रहे हैं. इनको दो हजार के गुलाबी नोटों में बदल दो।'' सांताक्लॉज हंस पड़े - ''वे बोले, ''मैं जादूगर नहीं हूँ भाई,सांताक्लॉज हूँ.अडानी-अम्बानी टाइप का अरब-खरबपति सेठ भी नहीं हूँ, जिसके घर जाकर बैंकवाले नए नोट थमा कर आ जाते हैं.. नोटबंदी के कारण मैं भी कुछ ठीक से खरीद नहीं पाया. मेरे खाते में बहुत धन भी नहीं था कि 'कैशलेस' खरीदी करता। मैं तो कुछ और उपहार ले कर चलता हूँ सस्ता-सुंदर और टिकाऊ.चहिये तो बोलो वरना मैं तो चला.'' उपहार सुन कर माळेमुफ्त के रोग से ग्रस्त कुछ लोग चीख पड़े , ''तो जल्दी निकालो, न नए साल का गिफ्ट। फोकट का चंदन भी होगा तो हम घिस लेंगे। सांताक्लॉज बोले - ''न मेरे पास चंदन है, न काजल है। मेरे पास जो है वो दे रहा हूँ. ये लो 'परमसंतोष', .... पकड़ो 'शांति', ये लो 'सद्भावना', ये रहा जीवन का परम 'आनंद।'' सांताक्लाज ने गठरी खोल दी। सांताक्लॉज के उपहारों से कुछ लोग भयंकर निराश हुए, मगर कुछ समझदार लोग प्रसन्न हो कर अपनी राह चल पड़े। 'थैंक्स गॉड' कहते हुए सांताक्लॉज भी लौट गए लेकिन वे सोचते हुए जा रहे थे कि अब दुबारा इस तरफ आना खतरे से खाली नही है. जान बची और लाखो पाए, लौट के सैंटा घर को आए.