इस देश में अगर योग के लिए प्रेरणा देने का काम किसी ने किया है तो वो है परमप्रिय महंगाई-सुंदरी.
इसे डायन कहना ठीक नहीं. डायन बर्बाद करती है, ये सुंदरी आबाद करती है. जनता और महंगाई-बाला दोनों अपने-अपने तरीके से योगासन कर रहे हैं. महंगाई के कारण लोग 'शीर्षासन' करने पर मजबूर है.
योग की सारी मुद्राएं करती है महंगाई. 'अनुलोम-विलोम' उसे बड़ा प्रिय है. साँस खींचती है यानी कीमत बढ़ाती है,और कभी-कभार साँस छोड़ती भी है. यानी कीमतें कम भी करती है लेकिन ऐसी नौबत कम ही आती है. वह अपना पेट गोल-गोल घुमाती रहती है. इसीलिये तो उसकी सेहत बनी हुई है. आम आदमी की सेहत गिर रही है. आम आदमी दाल की बढ़ती कीमत देख कर 'दुःखासन' करने लगता है.
तभी टमाटर लाल हो जाता है और
पेट्रोल मुंह चिढ़ाने लगता है,
तो आम आदमी ''शवासन'' करने की मुद्रा में आ जाता है.
आम आदमी महंगाई के विरुद्ध पहले बहुत 'चिल्लासन' करता रहता था, पर जब से वो समझ गया है सरकार 'बहरासन' (यानी बहरी) में माहिर हो चुकी है, तब से वह भी ''मौनआसन'' करने लगा है.'ऐसी मीठी कुछ नहीं, जैसी मीठी चूप.''
उस दिन महंगाईबाई मिल गई .
उसने कहा- ''आ लग जा गले.'' मैंने कहा -''हम दूर से ही भले''.
वह बोली- ''इतनी जल्दी घबरा गया पगले? अभी तो ये अंगड़ाई है, आगे और महंगाई है?''
मैंने कहा- ''तेरे कारण हम परेशान है ''
वह बोली- ''क्या करे, सरकार हम पर मेहरबान है' उसके कारण मेरा जलवा बना रहता है. तेरी थाली भले हो खाली पर मेरी थाली में तर हलवा बना रहता है.. दरअसल मैं तुम लोगो को हिम्मत देती हूँ. 'कम खाओ, गम खाओ' का सूत्र मैंने दिया है. कम खा कर सेहत बनाओ और योग करके फिट रहो. यह मैं ही तो सिखा रही हूँ.''
मैंने कहा-'' क्या हम लोग जीवन भर 'भूखासन' ही करते रहे?''
महंगाई बोली - ''बिलकुल 'भूखासन' करोगे तो 'सुखासन' मिलेगा.मैं इस देश के लोगों को सबक सीखने के लिए अपना ''योग'' दिखा रही हूँ . खा-खा कर लोग मुटा रहे हैं. आरामतलब हो गए हैं. मगर जब से मैंने अपना 'भ्रामरी' शुरू किया है, तब से लोग भी भुन-भुनाने लगे हैं. और मजबूरी में ही सही, एक टाइम खाना खा रहे हैं और देखो, कैसे फिट नज़र आ रहे हैं. इस तरह इस देश को मैंने योगासनो के लिए प्रेरित किया है. मैं न होती तो लोग मुटाते जाते। पड़े रहते. मेरे कारण कम खाते हैं और अधिक -से-अधिक पैसे कमाने की कोशिश करते हैं. भले ही नंबर दो की कमाई हो....
...'घोटालासन' कितना पॉपुलर हो गया है. किसके कारण? मेरे कारण।
....लोग पैसे वाले बन रहे हैं, किसके कारण? मेरे कारण.
....इस देश को पूंजीवादी कौन बना रहा है? मैं यानी महंगाई ,
....समझे मेरे भाई? चलो, अब कुछ मत बोलो. बोलने का कोई मतलब भी नहीं निकलता इसलिए एक अच्छा आसान बता रही हूँ, उसे करो और सुखी रहो.'
मैंने कहा- ''बता दो देवी, उसे भी कर लेते हैं.''
वह हंसी और बोली- ''इस देश में सुखी रहना है तो एक ही सर्वोत्तम योगासन है. उसे करते चलो. वैसे सालों से कर ही रहे हो. वह है ''चुप्पासन''. और 'कुढ़ासन' और 'दुःखासन'. चुप रहो और कुढ़ते रहो.''
महंगाई के भयंकर कमरतोड़ आसनो को सीख कर हम लौट आए.
अरे बाप रे बाप इतने और आसनों का इज़ाफ़ा !
जवाब देंहटाएंवास्तव में यही आजकल मुख्य आसन हैं, जो सर्वत्र छाए है भादौ के बादलों के तरह ..
बहुत खूब 👌
जवाब देंहटाएंमंहगाई तो सच्ची विभिन्न आसान करा ही देती है ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया व्यंग्य ।
नये आसन भी सिर्फ़ मँहगाई को कोस ही सकते हैं कुछ कर नहीं सकते यही तो आम जनमानस का दर्द है।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन व्यंग्य सर।
सादर प्रणाम।
बैठे बैठे इतने आसन, सुन्दर चित्रण।
जवाब देंहटाएंचुप्पासन और कुढ़ासन ही तो करते आये हैं सदियों से।
जवाब देंहटाएंवाह!!!
लाजवाब धारदार व्यंग।
सुशासन की प्रतीक्षा में
जवाब देंहटाएंसादर नमन.
😀😀😀 ओह मंहगाई के कारण कितने नए आसन ईजाद हो गए। रोचक व्यंग्य 👌👌👌👌👌🙏🙏😀😀
जवाब देंहटाएंमहंगाई के इतने आसन... योग कक्षा लगनी चाहिए@
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