3 जून 2016

' सूखे ' का परम ' सुख '


अपने यहाँ सूखा पड़े तो कुछ लोग  बड़े सुखी टाइप के हो जाते हैं. बाढ़ आ जाए या महामारी तो वे गदगद हो कर भगवान के आभारी हो जाते  हैं. ये सारे अवसर किसी उत्सव से भी कम नहीं होते। मंत्री से लेकर संत्री और अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक धन्य हो जाते हैं. कुछ सरकारी घरों में औरते यही मनाती है कि प्रभो, इस बार भी अच्छा-खासा  'सूखा' पड़े ताकि घर एक बार फिर कुछ 'गीला' हो सके. 'सूखा-उत्सव' का 'सुख' ही अलग है. 
अफसरजी की इकलौती बीवी अपनी सहेली  के साथ सूखे दिनों को याद कर रही है-''जब पिछली बार सूखा पड़ा था, तो बड़ा मज़ा आया था. 'ये' सूखा-सर्वे करने गए थे, इनके साथ हम भी चले गए. बड़े पत्नी-भक्त है. सरकारी दौरे में कभी-कभी साथ ले जाते हैं. हम रेस्ट हाउस में रुके. क्या खातिरदारी हुई थी वहां. पनीर की सब्जी तो बड़ी स्वादिस्ट बनी थी. खाना बड़ा लज़ीज़ था, सो अधिक खा लिया था. रसगुल्ले तो न जाने कितने पीस गटके होंगे. उसी कारण कुछ दिन पेट खराब रहा, इसलिए वह सूखा भुलाए नहीं भूलता। सूखा न पड़ता, तो घर में होम थिएटर वाला टीवी भी न आता. जब कोई बड़ा प्राकृतिक संकट आता है, हमारे घर में कोई-न-कोई बड़ा आइटम आ जाता है . भगवान का लाख-लाख शुक्र है..तेरी मेहर हम पर बनी हुई है..'' 

सहेली की बात सुनकर दूसरी बोली- ''सचमुच, सूखा में परमसुख छिपा है.मैं तो बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करती हूँ, पर क्या करें, कभी-कभी सूखा पड़ता ही नहीं, लेकिनकोई बात नहीं, तब बाढ़ आ जाती है न. उसके लिए भी राहत-फंड बहुत रहता है. इसी बहानेअपने घर में भी कुछ-ंन- कुछ राहत कार्य हो जता है . 'मतबल' ये कि सूखा आए चाहे बाढ़, हम लोग तर रहते हैं. अगले जन्म में हमें ऐसा ही पति दे जो सरकरी नौकरी में हो पर मालदार पोस्ट में  हो. ये जीवन तो एक दिन नष्ट हो जाएगा इसलिए क्यों न ऐश करके मरें.''  
पहली ने कहा - ''पर बड़ा संभल कर करना पड़ता है न. आजकल जलनखोर बढ़ गए हैं। शिकायत कर देते हैं. छापा पड़ जाता है। बड़ी मुसीबत हो जाती है.हालांकि कुछ-न-कुछ दे कर मामला मैनेज भी हो जाता  है।'' 
दूसरी ने कहा - ठीक कहती हो, कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है. इज़्ज़त को क्या चाटेंगे? अरे, नंबर दो का काम करने से कुछ बदनामी भी होती है, तो  सह लेना चाहिए। लेकिन फायदा कितना है, ये तो देखो।  वैसे आजकल छापे-वापे से बदनामी नहीं होती, उलटे शान बढ़ जाती है. बच्चे चहकते हुए  पड़ोस के बच्चों को बताते है कि  हमारे घर पर छापा पड़ा, तेरे घर नहीं पड़ा, लगता है तेरे डैडी कंगाल हैं।''  
पहली बोली- ''इस बार सूखा-उत्सव के बाद हम तो विदेश भ्रमण पर निकल जाएंगे। तेरा क्या प्लान है ?'' दूसरी बोली- '' हम लोग पंचतारा होटल में मैरिज एनवर्सरी को सेलिब्रेट करेंगे। मालेमुफ्त को उड़ाते रहना चाहिए।'' 
दोनों सहेलियां जोर से हंसती हैं. वे एक-दूसरे से सहमत थी और सूखे के कारण उनके जीवन में जो 'खुशहाली' बिखरी थी, उसका सुख लेते हुए वे किटी पार्टी के सुख को और अधिक बढ़ा रही थी.

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